देश भर में इस साल ईद-उल-अजहा का पर्व 6 व 7 जून 2025 को मनाया जाएगा. जिसे लेकर जोर शोर से तैयारियां भी चल ही हैं. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, साल भर में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है, लेकिन दोनों ही त्योहारों में काफी अंतर है. एक ईद को मीठी ईद और दूसरी ईद को बकरीद कहा जाता है. आइए आपको दोनों के बीच का फर्क बताते हैं.
दोनों में फर्क
मुस्लिम समुदाय में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है, एक ईद को ईद उल-फित्र कहा जाता है, जिसे मीठी ईद भी कहते हैं. वहीं दूसरी ईद को ईद उल अजहा कहते हैं, जिसे बकरा ईद कहते हैं. मीठी ईद के तकरीबन 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है. मुस्लिम समुदाय में दोनों ही त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. दोनों ही पर्व को आम भाषा में ईद कहा जाता है. इसलिए ज्यादातर लोग दोनों ईद फर्क नहीं कर पाते हैं. आज हम आपको बताते हैं ईद उल-फितर (मीठी ईद) और ईद-उल-अजहा (बकरा ईद) में क्या अंतर है, जानते हैं.
ईद-उल-अजहा
ईद-उल-अजहा को बकरीद कहते हैं, जो कि कुर्बानी या त्याग का पर्व है. मुस्लिम समुदाय ईद-उल-अजहा की तरह ईद-उल-फितर का पर्व भी मनाते हैं. दोनों पर्व अल्लाह की इबादत, लजीज पकवान और अपनों के साथ मनाए जाते हैं. लेकिन दोनों त्योहारों में अंतर अलग उद्देश्य का है. ईद-उल-फितर रमजान माह के अंत का प्रतीक है, जिसमें रोजा रखा जाता है. ईद-उल-अजहा पैगंबर इब्राहिम के बलिदान को याद किए जाने का दिन है.
ईद उल-फितर
साल में जो सबसे पहली ईद आती है, उसे ईद उल-फितर कहा जाता है, इस ईद को मीठी ईद या फिर सेवाइयों वाली ईद भी कहा जाता है. मीठी ईद को रोजा खत्म होने के बाद त्योहार के रूप में मनाई जाती है. पहली ईद उल-फित्र पैगंबर मुहम्मद साहब ने सन् 624 ई. में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी. इस दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी. यह ईद उन लोगों के लिए इनाम के रूप में मनाई जाती है, जिन्होंने पूरे महीने रोजा रखे थे.
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