इन दिनों मैरिड लाइफ में कहीं हत्या, तो कहीं आत्महत्या तो कहीं तलाक और ज्यूडिशियल सेपरेशन के मामले सामने आ रहे हैं. यह मामले काफी ज्यादा बढ़ रहे हैं. वहीं ज्यूडिशियल सेपरेशन और तलाक दोनों ही काफी अलग है, लेकिन कई बार लोग इसे एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं. ज्यूडिशियल सेपरेशन में कोर्ट के आदेश से पति-पत्नी अलग रह सकते हैं लेकिन कानूनी रूप से विवाहित रहते हैं. आइए आपको इन दोनों के बीच का फर्क बताते हैं.
क्या होता है ज्यूडिशियल सेपरेशन ?
ज्यूडिशियल सेपरेशन का मतलब होता है कोर्ट के आदेश से पति-पत्नी अलग रह सकते हैं. हालांकि इस नियम में वे कानूनी रूप से पति-पत्नी बने रहते हैं, बस उन्हें एक-दूसरे से अलग रहने की अनुमति मिल जाती है. दरअसल, ये एक तरह से Cooling Off Period की तरह काम करता है. इस दौरान उन्हें सोचने और विचार करने का मौका मिल जाता है कि वे एक दूसरे के साथ जिंदगी आगे बिता पाएंगे या नहीं.
क्या है इसको लेकर नियम
Hindu Marriage Act, 1955- इस एक्ट के Section 10 में ज्यूडिशियल सेपरेशन का नियम है.
Special Marriage Act, 1954- इसमें भी यही सुविधा दी गई है.
ईसाई समुदाय के लिए Indian Divorce Act, 1869 में यह नियम लागू किए गए हैं.
वहीं Muslim Law में 'तलाक' की कानूनी प्रक्रिया थोड़ी अलग है. यहां ज्यूडिशियल सेपरेशन जैसा कॉन्सेप्ट वैसा क्लियर नहीं होता है. हालांकि कई मामलों में कोर्ट से परमिशन लेकर बिना तलाक के अलग रहा जा सकता है.
Divorce और Judicial Separation में फर्क
तलाक लेने पर शादीशुदा रिश्ता पूरी तरह से खत्म हो जाता है. वहीं Judicial Separation में रिश्ते बने रहते हैं लेकिन साथ रहने की जबरदस्ती नहीं होती है. वहीं तलाक लेने पर दोनों लड़का-लड़की दोबारा शादी कर सकते हैं. लेकिन दूसरी ओर Judicial Separation में होने पर आप शादी नहीं कर सकते हैं. डिवोर्स लेने पर पति-पत्नी कानूनी रूप से अलग हो जाते हैं. जबकि दूसरी कंडीशन में वे कानूनी रूप से पति-पत्नी ही माने जाते हैं. तलाक लेने का सीधा मकसद ये होता है कि वे हमेशा के लिए अलग हो रहे हैं, जबकि दूसरे नियम के तहत, वे रिश्ते को समय देते हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.