माउंट एवरेस्ट पर ‘जिंदा लाशों का क्या है कनेक्शन', जानिए इसके पीछे की सच्चाई

पहाड़ जितने खूबसूरत होते हैं उतने ही खतरनाक! हिमालय को आसमान का हमसाया कहते हैं. इसकी चोटियों में ऐसा सम्मोहन है कि जिसने इनसे दिल लगाया, वो उसी का होकर रह गया.

पहाड़ जितने खूबसूरत होते हैं उतने ही खतरनाक! हिमालय को आसमान का हमसाया कहते हैं. इसकी चोटियों में ऐसा सम्मोहन है कि जिसने इनसे दिल लगाया, वो उसी का होकर रह गया.

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Nidhi Sharma
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माउंट एवरेस्ट

माउंट एवरेस्ट Photograph: (Freepik (AI))

पहाड़ों की ख़ूबसूरती किसको नहीं लुभाती. ऊंची-ऊंची चोटियां. चारों तरफ़ बर्फ़ ही बर्फ़. यूं लगता है जैसे कोई संन्यासी धूनी रमाए बैठा है. पहाड़ों का ये शांत माहौल लोगों को अपनी तरफ़ खींचता है. इनकी ऊंची चोटियां चुनौती देती सी लगती हैं. इन चोटियों को फ़तह करने का बहुत से लोगों को जुनून होता है. मगर, पहाड़ इन लोगों के जुनून का भी इम्तिहान लेते हैं. ग़लतियां होने पर सख़्त सज़ा देते हैं. कई बार तो ये मौत की सज़ा भी देते हैं. माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 30 हजार फीट है और जेट एयरक्राफ्ट भी 30 हजार फीट की ऊंचाई पर ही उड़ता है. जबकि लाइट एयरक्राफ्ट तो 10 हजार फीट की ऊंचाई को भी पार नहीं कर पाते. 

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रास्ते में बिखरी लाशें 

अक्सर आपने देखा होगा कि जब भी लोग एवरेस्ट से आते हैं, तो  उनके साथ कुछ ना कुछ हादसा हो ही जाता है. कुछ लोगों की मौत हो जाती है, तो कुछ लोग लापता हो जाते हैं. एवरेस्ट की चढ़ाई करने वालों को मालूम है कि इसकी चढ़ाई के रास्ते में बिखरी पड़ी हैं लाशें. क्योंकि पहाड़, मौत की सज़ा देने के बाद भी इन लाशों को आसानी से नहीं छोड़ते. बरसों-बरस ये मुर्दा इंसान, बर्फ़ीली दरारों, चट्टानों के बीच पड़े रहते हैं.

200 लाशें बन चुकी हैं लैंडमार्क

माउंट एवरेस्ट के रास्ते में तकरीबन 200 लाशें ऐसी हैं जिन्हें नए मुसाफिरों को रास्ता दिखाने के लिए छोड़ा गया है. अब तो इन्हें लैंडमार्क कहा जाता है. इस रास्ते पर 1924 से लेकर 2024 तक 7,200 पर्वतारोही एवरेस्ट पर जा चुके है. अब तक 340 यात्री मौत की नींद सो चुके हैं. इनमें 161 पश्चिमी देशों से आये पर्वतारोही थे जबकि 87 स्थानीय शेरपा थे. साल 2014 में भी यहां बर्फीले तूफान की चपेट में आने से 16 लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद साल 2015 में भी कई बार बर्फीले तूफान आए और अपने पीछे छोड़ गए कई लाशें!

एवरेस्ट की चोटी की डेथ

सबसे ज़्यादा मौतें, एवरेस्ट की चोटी के क़रीब के हिस्से में होती हैं. ये इलाक़ा 'डेथ ज़ोन' के नाम से बदनाम है. लोग अक्सर चढ़ाई की तैयारी करते वक़्त ग़लतियां करके जान गंवाते हैं. वैसे एवरेस्ट पर मरने वालों की बड़ी तादाद जीत हासिल करके लौट रहे लोगों की भी है. कई बार तो मौत का आंकड़ा इतना बढ़ जाता है कि नेपाल की सरकार चढ़ाई के अभियानों पर रोक लगा देती है. मगर, जल्द ही लोग सब-कुछ भूल जाते हैं. और नए सिरे से इस ऊंची चोटी पर चढ़ने की तैयारी शुरू कर देते हैं. इस काम में इतना पैसा मिलता है. इतनी शोहरत मिलती है कि लोग अपनी ज़िंदगी को भी दांव पर लगाने से नहीं हिचकते.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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