दिल्ली हाई कोर्ट में इस वक्त करेवा विवाह काफी ज्यादा चर्चा में है. दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने करेवा विवाह से पैदा हुए बच्चों के कानूनी अधिकारों की जांच करने का फैसला किया है. कोर्ट ने इस सवाल पर गौर किया है इन बच्चों को वही अधिकार मिलने चाहिए, जो कि अन्य वैध विवाह से पैदा हुए बच्चों को मिलते हैं. आइए आपको इस विवाह के बारे में बताते है.
क्या है करेवा विवाह?
उत्तर भारत में आज भी कई परंपराएं ऐसी है जो कि आज भी कई समुदाय में देखने को मिलते है. वहीं एक परंपरा काफी चर्चा में है. जिसे करेवा विवाह कहते है. यह परंपरा ज्यादा यादव समुदाय में देखने को मिलती है. इस प्रथा में एक व्यक्ति अपने बड़े भाई की विधवा पत्नी से शादी करता है. यह परंपरा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी देखने को मिलती है. इसका मकसद परिवार को एकजुट रखना, परिवार की संपत्ति को बिखरने से बचाना और विधवा को आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा देना होता है.
क्या होता है इसका मकसद
इस परंपरा में दूल्हा और दुल्हन अलग-अलग परिवारों से नहीं बल्कि एक ही परिवार का हिस्सा होते हैं. पुराने समय में विधवाओं को समाज के ताने और उलाहने सहने पड़ते थे. ऐसे में करेवा विवाह न सिर्फ उनको सुरक्षा देता था, बल्कि समाज में सम्मान भी दिलाता था. ऐसी शादी का एक बड़ा मकसद परिवार की संपत्ति को एकजुट रखना होता है. दूसरी शादी में जैसे जमीन और संपत्ति में परिवार में बंटवारे का डर होता है, वहीं करेवा विवाह में जमीन और घर परिवार में ही रहते हैं. कुछ समुदाय के लोग इसे अपने परिवार का गौरव मानते हैं, वहीं कई बार यह शादी विधवा की मर्जी के बगैर होती है, इससे महिलाओं की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठता है.
स्पष्ट उल्लेख नहीं
इस शादी की खासियत है कि यह न तो पूरी तरह से सामान्य विवाह की तरह है और न ही आधुनिक विवाह में गिना जाता है. यह सिर्फ समाज की कुछ मान्यताओं पर टिका हुआ है, लेकिन इसमें बच्चों के अधिकार को लेकर कानूनी दिक्कतें होती हैं. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन पंजाब और हरियाणा के कई मामलों में विवाह की इस प्रथा को मान्यता दी है.
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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.