क्या महाभारत काल में भी Sperm किए जाते थे रिजर्व? पांडवों और कौरवों के गुरु का ऐसा हुआ था जन्म

महाभारत के कुछ पात्रों का जन्म हैरानी भरा रहा है. महाभारत हिन्दुओं का प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो हिंदू धर्म के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है.महाभारत को 'पंचम वेद' कहा गया है. यह ग्रंथ हमारे देश के मन-प्राण में बसा हुआ है.

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Nidhi Sharma
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पांडवों और कौरवों के गुरु

पांडवों और कौरवों के गुरु Photograph: (Social Media)

महाभारत में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जिनके बारे में जानना और पढ़ना काफी मजेदार होता है. महाभारत हिन्दुओं का प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो हिंदू धर्म के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है. महाभारत को 'पंचम वेद' कहा गया है. वहीं आज हम आपको एक ऐसी ही घटना के बारे में बताने जा रहे है. जिसको सुनकर आपको काफी ज्यादा हैरानी होगी. हालांकि यह बात महाभारत के दौर में ऐसा ही हुआ था. 

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साइंस ने बताया 

दरअसल, कौरवों और पांडवों के गुरु आचार्य द्रोणाचार्य का जन्म काफी अलग तरीके से हुआ है. उनका जन्म वीर्य से भरे एक पात्र से हुआ था. यानी की स्पर्म के कटोरे से हुआ था. कुछ लोग इस पात्र को दोना मानते हैं तो कुछ कलश तो कुछ कटोरी. वह प्रसिद्ध महर्षि भारद्वाज के अनियोजित पुत्र कहलाए. उन्होंने अपना वीर्य एक कलश में रखा, जिससे द्रोण की उत्पत्ति हुई. साइंस भी कहती है कि मानव स्पर्म को 40 सालों तक सुरक्षित रखकर उससे बच्चा पैदा किया जा सकता है.

स्पर्म से पैदा हुए थे द्रोणाचार्य

कहा जाता है कि महर्षि भारद्वाज ने गंगा में स्नान करती अप्सरा घृताची को देखा. वह आसक्त हो गए. उन्होंने स्खलित वीर्य यज्ञकलश में रख दिया. यज्ञकलश को द्रोण भी कहा जाता है. इस वीर्य से कुछ समय बाद एक बालक का जन्म हुआ, जो द्रोण थे. बाद में जब वह जाने – माने आचार्य बने तो उन्हें द्रोणाचार्य के नाम से बुलाया जाने लगा. घृताची को उनकी मां के तौर पर जाना गया. वैसे द्रोण के जन्म का दूसरा मत ये भी है कि भारद्वाज जब अप्सरा घृताची पर आसक्त हो गए तो उन्होंने उनके साथ शारीरिक मिलन किया. उससे द्रोण का जन्म हुआ. द्रोण के नाम का अर्थ है बर्तन या बाल्टी या तरकश.

कौन थीं अप्सरा घृताची

अब अप्सरा घृताची के बारे में भी जान लीजिए. घृताची प्रसिद्ध अपसरा थीं, जो कश्यप ऋषि तथा प्राधा की पुत्री थी. उनके जीवन में कई ख्यातिलब्ध पुरुष आए, जिनके मिलन से उन्होंने कई पुत्र-पुत्रियों को जन्म दिया. पौराणिक परंपरा के अनुसार घृताची से रुद्राश्व द्वारा 10 पुत्रों, कुशनाभ से 100 पुत्रियों, च्यवन पुत्र प्रमिति से कुरु नामक एक पुत्र तथा वेदव्यास से शुकदेव का जन्म हुआ. भरद्वाज से द्रोणाचार्य के जन्म का किस्सा तो ऊपर बता ही दिया गया है.

कितने सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है स्पर्म

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की साइट पर तमाम रिसर्च को जगह मिलती है. इसके अनुसार 20 सालों से कहीं ज्यादा समय मानव स्पर्म को सुरक्षित रखा जाता है. इन संग्रहीत स्पर्म से बच्चे पैदा होने की रिपोर्ट है. ये प्रयोग जानवर से लेकर मानव तक पर हुए हैं. जनवरी और दिसंबर 1971 के बीच, 52 से 53 वर्ष की आयु के एक व्यक्ति ने अपने स्पर्म को लंबे समय तक संग्रहीत करने के लिए फ्रीज करने का अनुरोध किया. इसे जब एक महिला को उपलब्ध कराया गया तो उससे उसने दो स्वस्थ लड़कियों को जन्म दिया. एक रिपोर्ट ये भी कहती है कि करीब 40 वर्षों (39 वर्ष, 10 महीने और 40 वर्ष, 9 महीने के बीच) तक मानव स्पर्म को अगर संग्रहीत रखा जाए तो आईसीएसआई-आईवीएफ के माध्यम से इसमें बच्चे को जन्म देने की क्षमता रहती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है).

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