साड़ी एक ऐसा परिधान है जिसे ज्यादातर भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल की महिलाएं पहनती हैं.साड़ी के साथ ब्लाउज सबसे जरूरी पेयर है और इसी से लुक कंप्लीट होता है. वहीं इससे लुक में शालीनता को जोड़ने के तौर पर देखा जाता है. वहीं कई एक्ट्रेस ऐसी हैं जिन्होंने फिल्मों में बिना ब्लाउज के साड़ी को वियर किया है या फिर फोटोशूट भी करवाया है. लेकिन रियल लाइफ में भी इस तरह की साड़ी पहनी जाती है.
इस तरह कवर करती थीं
महिलाएं निचले शरीर को ढकने के लिए बिना सिले या बुने हुए कपड़े पहनती थीं. जो कि ब्रेस्ट एरिया को कवर करती थीं. कई बार तो वह उपरी हिस्से को ऐसे ही खुला छोड़ देती थी या फिर उसे आभूषण से उसे कवर करती थीं. अप्सराओं और देवियों के सभी ग्रंथ में छपी तस्वीर या खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि महिलाएं शरीर के ऊपरी हिस्सों को ज्यादा नहीं ढकती थीं. माना जाता है कि सिली हुई चोली पहनना बहुत बाद में शुरु हुआ था.
बिना ब्लाउज और पेटीकोट
वैदिक काल में साड़ी को शरीर के चारों तरफ लपेटने की परंपरा थी. बिना ब्लाउज और पेटीकोट के वो इसे लपेटती थीं. इसे "अंतरीय" कहा जाता था और साड़ी को एक विशेष शैली में लपेटा जाता था, जो शरीर को ढकने का काम करती थी. लेकिन संस्कृति में बदलाव के साथ-साथ ऊपरी तन को भी ढकने का सिलसिला शुरू हुआ.
टाइट कपड़े से बांधा
मध्यकालीन समय में महिलाएं ऊपरी हिस्से को ढकना शुरू कर दिया. वो कपड़े से ब्रेस्ट एरिया को बांधती थीं. जिसे "स्तनपट्ट" कहा जाता था. ब्रेस्ट को काफी टाइट कपड़े से बांधा जाता था ताकि स्तन फ्लैट लगे. लेकिन भारतीय महिलाओं के पहनावे में अहम बदलाव ब्रिटिश उपनिवेश काल से शुरू हुआ. ब्रिटिश महिलाएं पूरे कपड़े पहनती थीं. फुल पोशाक से वो अपने संपूर्ण अंग को कवर करती थीं. जिसे देखकर भारत की महिलाओं ने भी इंस्पिरेशन लिया.
ब्लाउज का बढ़ा ट्रेंड
धीरे-धीरे महिलाएं ब्लाउज को अलग-अलग कट में करके सिलने लगीं. आधुनिक युग में ब्लाउज के नीचे ब्रा पहनने की शुरुआत हुई. आज साड़ी के साथ-साथ अलग-अलग डिजाइन के ब्लाउज बनने लगे हैं. जो साड़ी के पूरे लुक तो चेंज कर देते हैं. जब महिलाओं ने ब्लाउज या चोली पहनना शुरू किया था तो उसमें ऊंचे कॉलर, रिबन, क्रोच आदि कई चीजें लगी होती थीं.