डरा सकती है यहां की परंपरा, मुर्दों की हड्डियों की राख का सूप बनाकर पीते हैं लोग, इसलिए निभाते हैं ये रिवाज

Unique Funeral Tradition: दुनियाभर में अंतिम संस्कार के अलग अलग रीति-रिवाज होते हैं. इस बार हम आपको ऐसी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको शायद डरा भी सकती है और चौंका भी सकती है.

Unique Funeral Tradition: दुनियाभर में अंतिम संस्कार के अलग अलग रीति-रिवाज होते हैं. इस बार हम आपको ऐसी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको शायद डरा भी सकती है और चौंका भी सकती है.

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Yashodhan.Sharma
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Weird Traditions: दुनिया में अलग-अलग समाज और जनजातियों की अपनी-अपनी परंपराएं होती हैं, जो कई बार इतनी अनोखी होती हैं कि जानकर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है. हालांकि, इनका गहरा सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व होता है. ऐसा ही कुछ दक्षिण अमेरिका में रहने वाली यानोमामी जनजाति है जो कि एक ऐसी ही अनूठी परंपरा का पालन करती है, जो अंतिम संस्कार से जुड़ी है.

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यानोमामी जनजाति वेनेजुएला और ब्राजील की सीमा पर स्थित अमेजन के जंगलों में रहती है. यह जनजाति आधुनिक सभ्यता से काफी अलग है और अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों का सख्ती से पालन करती है. इनकी अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपरा को एंडोकैनिबेलिज्म (Endocannibalism) कहा जाता है. इसमें वे अपने ही परिजन के शव का मांस खाते हैं या फिर उसकी राख को सूप बनाकर पीते हैं.

कैसी होती है यह परंपरा?

जब यानोमामी जनजाति में किसी की मृत्यु होती है, तो शव को पहले पत्तों से ढककर जंगल में रख दिया जाता है. करीब 30 से 40 दिनों बाद उस शव को जलाया जाता है. फिर जो राख बचती है, उसे इकट्ठा करके केले के पत्तों या अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर एक तरह का सूप तैयार किया जाता है. इस सूप को मृतक के करीबी रिश्तेदार पीते हैं.

इसलिए मानते हैं जरूरी

यानोमामी लोगों का मानना है कि जब तक मृतक का शरीर पूरी तरह उनके अंदर समाहित नहीं होता, तब तक उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती. इस परंपरा को वे मृतक की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए जरूरी मानते हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि किसी की हत्या कर दी जाती है, तो उस स्थिति में केवल महिलाएं ही राख को खाती हैं. इससे उनका मानना है कि मृतक की आत्मा को बदला लेने की ताकत मिलती है.

परंपरा के प्रति दृढ़

आज भले ही दुनिया तेजी से बदल रही हो, लेकिन यानोमामी जनजाति अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है. उनकी यह परंपरा भले ही बाकी दुनिया को अजीब लगे, लेकिन उनके लिए यह सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है.

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