logo-image

Gandhi Jayanti 2023: जरा याद करो कुर्बानी... गांधी जयंती पर जानें राष्ट्रपिता की असल कहानी

महात्मा गांधी ने कई आंदलनों की शुरुआत की, जिससे भारत में अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा. यहां पढ़िए आजादी की वो कहानी, जिसे शायद कभी नहीं सुनी होगी...

Updated on: 29 Sep 2023, 04:58 PM

नई दिल्ली:

आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी! महात्मा गांधी के ये अनमोल वचन, आज कई दशकों बाद भी प्रासंगिक है. दरअसल वो दौर था आजादी का, जब स्वाधीनता की धुन में झूमते देश के तमाम स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों को खदेड़ने में लगे थे. बेतहाशा हिंसा-हथियार-खून खराबे के बीच पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ था, नतीजा था दुख, पीड़ा और डर. इसी बीच इस बुजुर्ग शख्सियत के बुलंद हौसले और अहिंसावादी विचारों के साथ स्वाधीनता के अथक प्रयासों ने आखिरकार अंग्रेजों को घुटने टिकवा दिए...

महात्मा गांधी के इसी जस्बे, जुनून और अद्भुत ताकत को याद करते हुए, हर साल 2 अक्टूबर को उनके जन्म तिथी के अवसर पर गांधी जयंती मनाई जाती है. मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें प्यार से लोग बापू कहा करते थे उन्हें देश का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है.  

स्वतंत्रता की लड़ाई में बापू के अतुल्य योगदान से ही देश को आजादी मिली, उनके अथक प्रयासों के बदौलत न सिर्फ अंग्रेज देश छोड़ भाग खड़े हुए, बल्कि भारत पर शासन का पूरा दारोमदार भारतीयों को सौंपा. तो चलिए आज उनके जीवन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी को संक्षिप्त में जानें...

शुरुआती जीवन...

गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता जी का नाम पुतलीबाई था. उनके पिताजी पंसारी जाति से थे, जो उस समय पोरबंदर के दीवान हुआ करते थे. 

जब गांधी जी 13 साल के हुए, तो गांधी जी की शादी 14 साल की कस्तूरबा बाई से हो गई. इसके बाद सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर अगले साल भावनगर के श्यामल दास कॉलेज में एडमिशन ले लिया. जहां से उन्होंने डिग्री प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए.

आंदोलन की शुरुआत...

लंदन में बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी कर, साल 1916 में वो दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए, जिसके बाद उन्होंने देश में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर भाग लिया. अब तारीख आई 1 August 1920 की, जब कांग्रेस के नेता बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गई, जिसके बाद गांधी जी ने बतौर कांग्रेस के मार्गदर्शक की भूमिका अदा की. 

भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, मगर इस दौरान असहयोग आंदोलन में पेश आए चोरा चोरी कांड के बाद ये आंदोलन बंद कर दिया गया. इतिहास के इसी मोड़ से तमाम आंदोलनों में अहिंसा का प्रचार शुरू हुआ. इन्हीं तमाम आंदोलनों ने भारत की आजादी की नींव रखी, फिर साल 1947 में देश को आजादी मिल गई, जिसके अगले ही साल गांधीजी की हत्या कर दी गई.