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Chanakya Niti: अगर चाहते हैं खत्म हो जाए आपके सारे दुख, अपनाएं ये उपाय

चाणक्य नीति भी यही कहती है कि इंसान की जिंदगी में दुख और सुख आते रहते हैं लेकिन जब कोई महत्वकांक्षी हो जाता है तो उसका दुख कभी खत्म नहीं होता है. महत्वकांक्षा आपके दुख को हर दिन बढ़ाता रहता है.

Updated on: 21 Feb 2021, 09:00 AM

नई दिल्ली:

Chanakya Niti : आज हर कोई अपनी महत्वकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात भाग रहा है. इसके बाद भी हर दूसरा व्यक्ति दुखी और परेशान है. किसी को वो नहीं मिल रहा जो चाहता हैं तो कोई कम समय में सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंचना चाहता हैं, इसलिए दुख से भरा हुआ है. इन दोनों बातों से यही साबित होता है कि व्यक्ति के दुखों का सबसे बड़ा कारण ही उसकी महत्वकांक्षा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण महारभारत की कथा है. इस महायुद्ध की लड़ाई की जमीन ही महत्वकांक्षाओं पर तैयार हुई थी. दुर्योधन की महत्वाकांक्षा थी कि वो हस्तिनापुर का राजा बनें. दुर्योधन की इसी महत्वाकांक्षा ने संपूर्ण कौरवों का सर्वनाश कर दिया.

चाणक्य नीति भी यही कहती है कि इंसान की जिंदगी में दुख और सुख आते रहते हैं लेकिन जब कोई महत्वकांक्षी हो जाता है तो उसका दुख कभी खत्म नहीं होता है. महत्वकांक्षा आपके दुख को हर दिन बढ़ाता रहता है. चाणक्य के मुताबिक, महत्वाकांक्षा व्यक्ति का सबकुछ समाप्त कर देता हैऔर दुखों में बढ़ोतरी करती है. अगर समय रहते व्यक्ति अपने महत्वाकांक्षा को समाप्त नहीं कर देता है तो किसी समय ये भारी हानि पहुंचाती है.

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ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कैसे अपनी महत्वकांक्षा को समाप्त करें. हम यहां ऐसी कुछ चीजों का जिक्र करेंगे, जिन्हें अपनाकर आप इससे मुक्ति पाकर जीवन में खुशियां हासिल कर सकते हैं. 

मेहनत पर करें यकीन

व्यक्ति को अपने मेहनत पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि यही चीज आपको सफलता दिला सकती है. वहीं जिस भी व्यक्ति को अपनी मेहनत पर भरोसा नहीं होता है तो वो दूसरा अन्य मार्ग अपनाता हैं. महत्वकांक्षी व्यक्ति भी अपनी मेहनत से ज्यादा दूसरी अन्य रास्तों पर यकीन करता है और इस तरह वो गलत राहों पर चलने लगता है. अनैतिक मार्गों पर चलकर किया गया कार्य व्यक्ति के पतन का कारण बनता है. 

धर्म की महत्ता को समझें

हमेन शुरू में ही आपको महाभारत का उदाहरण दिया था. इसमें कुंती के ज्येष्ठ पुत्र युध्षिठिर हमेशा धर्म के रास्ते पर चलता है. वो ऐसा कोई भी कार्य नहीं करते थे, जो धर्म के विरुद्ध हो. युध्षिठिर धर्म के महत्व को समझते थे इसलिए भी उन्हें महत्वकांक्षाओं ने कभी नहीं घेरा. दरअसल, धर्म पर चलने वालों को किसी भी प्रकार का लालच और तृष्णा आकर्षित नहीं कर पाती है. यहीं वजह है कि महत्वाकांक्षा को खत्म करने के लिए धर्म का ज्ञान प्राप्त करना महत्वपूर्ण होता है.