पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार में राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न, मृदा स्वास्थ्य और जड़ी-बूटी खेती में तकनीकी क्रांति पर हुआ मंथन

पतंजलि विश्वविद्यालय में जड़ी-बूटियों की सतत खेती विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. जिसका आयोजन आयुष मंत्रालय, नाबार्ड और पतंजलि ने मिलकर किया.

पतंजलि विश्वविद्यालय में जड़ी-बूटियों की सतत खेती विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. जिसका आयोजन आयुष मंत्रालय, नाबार्ड और पतंजलि ने मिलकर किया.

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Akansha Thakur
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Patanjali University Haridwar

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पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार मेंमृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन द्वारा गुणवत्तापूर्ण जड़ी-बूटियों की सतत खेती” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम भारत सरकार के आयुष मंत्रालय, पतंजलिऑर्गेनिकरिसर्चइंस्टिट्यूट, आरसीएससीएनआर-1, नाबार्ड और भरुवाएग्रीसाइंसके संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ. सम्मेलन का उद्देश्य स्वस्थ धरती, टिकाऊ कृषि और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को प्रोत्साहित करना था.

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आचार्य बालकृष्ण बोले जैव विविधता ही कृषि सफलता की कुंजी

पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने सम्मेलन का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से किया और मुख्य अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ व स्मृति चिह्न भेंट कर किया.उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि रासायनिक खेती के अत्यधिक प्रयोग से धरती मूक पीड़ा झेल रही है, जिससे आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा. उन्होंने किसानों से जैविक खेती अपनाने का आग्रह करते हुए कहा कि "जैव विविधता ही कृषि प्रणाली की सफलता की कुंजी है."आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि पतंजलि संस्था न केवल पर्यावरण संरक्षण बल्कि बायो-कंपोस्ट और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों पर निरंतर अनुसंधान कर रही है. भारत सरकार के सहयोग से अब तक 80,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है.

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स्वामी रामदेव ने कहा औषधीय खेती में आधुनिक तकनीक जरूरी

परम पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि आज की आवश्यकता है कि देश औषधीय पौधों की आधुनिक कृषि-प्रौद्योगिकी विकसित करे.उन्होंने बताया कि देश में कुल फूडप्रोसेसिंग का लगभग 10% काम होता है, जिसमें पतंजलि की हिस्सेदारी 8% है। संस्था आंवला, एलोवेरा, अनाज और तिलहन उत्पादन में अग्रणी है.स्वामी जी ने कहा कि खेती में प्रौद्योगिकी के एकीकरण से मृदा प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव संभव हैं.डिजिटलप्लेटफॉर्म के माध्यम से किसान मृदा परीक्षण, फसल नियोजन और सिंचाई प्रणाली को सुधार सकते हैं.उन्होंने बताया कि पतंजलि द्वारा निर्मित ऑटोमेटेडमृदा परीक्षण मशीन "डीकेडी" से फसल की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

पतंजलि हरित क्रांति का केंद्र

आईसीएआर के उप महानिदेशक डॉ. राजबीर सिंह ने कहा कि पतंजलि आज हरित क्रांति का केंद्र बन चुका है. उन्होंने बताया कि जड़ी-बूटी खेती से उत्तराखंड में पलायन रोकने में मदद मिल रही है.उन्होंने बतायाकिपतंजलिकिसानोंसेसीधेउत्पादखरीदकरउनकीआयदोगुनीकरनेकाप्रयासकररहाहैऔरबी-बैंकिंगप्रणालीकेमाध्यमसेकिसानोंकोडिजिटलरूपसेजोड़ागयाहै.

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वैज्ञानिकों ने साझा किए तकनीकी उपाय

सम्मेलन में विभिन्न विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे. डॉ. प्रदीप शर्मा ने कहा कि मृदा स्वास्थ्य पौधों, पशुओं और मानव जीवन की नींव है. डॉ. संजय श्रीवास्तव ने रिमोट सेंसिंग और डीएनए अनुक्रमण तकनीकों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन विधियों से मिट्टी की पोषकता का सटीक मूल्यांकन संभव है.

अन्य विशेषज्ञों डॉ. टी.जे. पुरकायस्थ, डॉ. आर.के. सेतिया, प्रो. अजय नामदेव, डॉ. बलजीत सिंह, डॉ. जी.पी. राव, और डॉ. गुलशन कुमार ढींगरा ने औषधीय पौधों की गुणवत्ता नियंत्रण और कृषि-प्रौद्योगिकी विकास पर अपने विचार प्रस्तुत किए.

कार्यक्रम का समापन और भविष्य की दिशा

कार्यक्रम के अंत में डॉ. वेदप्रिया आर्य, विभागाध्यक्ष (जड़ी-बूटी अनुसंधान विभाग), ने पतंजलि की आगामी योजनाओं और ऑनलाइन कोर्सेज की जानकारी दी.नाबार्ड प्रतिनिधियों ने पतंजलिफूड, हर्बलगार्डन और अनुसंधान केंद्र का भ्रमण कर संस्था के प्रयासों की सराहना की.कार्यक्रम का समापन सभी अतिथियों और प्रतिभागियों के आभार के साथ हुआ, इस संकल्प के साथ कि भारत टिकाऊ और मृदा-संपन्न कृषि की दिशा में एक नई मिसाल कायम करेगा.

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