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मछली खाने के हैं शौकीन तो हो जाएं सावधान, सामने आया ये डरावना सच

241 फिश फार्म पर की गई स्टडी में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. स्टडी में पता चला है कि इन फार्मों में खाद्य सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया जा रहा है. इसके साथ ही फार्मों में सीसा और कैडमियम की अधिक मात्रा पाई गई है. 

Updated on: 20 Jan 2021, 04:17 PM

नई दिल्ली:

देश के कई राज्य बर्डफ्लू के कारण प्रभावित है. इन जगहों पर चिकन और अंडों की ब्रिक्री पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है. लोग भी बर्डफ्लू के डर से चिकन खाने से परहेज कर रहे हैं. चिकन की जगह लोग अब मछली खा रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं आपकी थाली में रखी मछली भी सुरक्षित नहीं है.  241 फिश फार्म पर की गई स्टडी में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. स्टडी में पता चला है कि इन फार्मों में खाद्य सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया जा रहा है. इसके साथ ही फार्मों में सीसा और कैडमियम की अधिक मात्रा पाई गई है. 

ये स्टडी 10 राज्यों के फार्मा कंपनी पर किया गया था. इस स्टडी में तमिलनाडू के कई शहरों में मछली फार्म में पानी काफी दूषित पाया गया. वहीं पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश, और पश्चिम बंगाल के फार्म में काफी उच्च स्तर का सीसा मिला. बिहार, ओडिशा और तमिलनाडू के फार्म पर्यावरण के लिए काफी हानि पाए गए.

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दक्षिण भारत के राज्यों में मछली के फार्म में सीसा और कैडमियम की सबसे ज्यादा मात्रा मिली है. ये दोनों तत्व जब शरीर के अंदर जाते है तो कोशिकाएं डैमेज हो जाती हैं.  इसके अलावा जांच में पता चला कि लगभग 40 प्रतिशत फार्म बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. इससे न सिर्फ इंसानों बल्कि मछलियों के लिए भी बड़ा खतरा पैदा होता है.

बता दें कि साल 2020 में केरल में 2,000 किलोग्राम से अधिक मछलियों को नष्ट कर दिया गया था क्योंकि उन्हेंऔपचारिक रूप से भारी मात्रा में दूषित पाया गया था. दिल्ली जैसे अन्य राज्यों में भी कई फार्मों में ऐसी ही मछलियां नष्ट हो गईं. ये सभी मछलियां इतनी प्रदूषित थी कि उन्हें खाना मुमकिन नहीं था.

द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (स्लॉटर हाउस) रूल्स, 2001 और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (लाइसेंसिंग एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ फूड बिजनेस्स) रेगुलेशन, 2011 के मुताबिक, काटने से पहले किसी भी मछली समेत किसी भी जानवर को स्वस्थ्य रहना चाहिए. लाइसेंस प्राप्त बूचड़खानों में भी इसका खयाल रखा जाता है. लेकिन कई मछली फार्म में इसका पालन नहीं किया जा रहा.