नई दिल्ली, 10 जुलाई (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आधार कार्ड पंजीकरण को लेकर चौंकाने वाला डेटा सामने आया है। इन आंकड़ों ने न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकता से जुड़ी चिंताओं को भी हवा दे दी है। जहां पूरे राज्य की औसत आधार सैचुरेशन दर 94 है, वहीं मुस्लिम बहुल जिलों, जिनका बॉर्डर दूसरे देश से लगा है, वहां यह आंकड़ा 120 फीसदी से भी अधिक पहुंच गया है।
सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा किशनगंज जिले का है, जहां 68 फीसदी मुस्लिम आबादी है, लेकिन आधार सैचुरेशन 126 फीसदी है। यानी कि वहां हर 100 लोगों पर 126 आधार कार्ड जारी हुए हैं। यही हालात कटिहार (44 मुस्लिम आबादी, 123 आधार), अररिया (43, 123) और पूर्णिया (38, 121) जैसे अन्य जिलों में भी देखने को मिल रहे हैं।
इसका सीधा मतलब यह है कि इन जिलों में वास्तविक जनसंख्या से कहीं अधिक आधार कार्ड बनाए गए हैं।
आधार सैचुरेशन का तात्पर्य यह है कि किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या की तुलना में कितने प्रतिशत लोगों ने आधार बनवा लिया है। सामान्यतः यह आंकड़ा 100 के आसपास होना चाहिए, लेकिन जब यह 100 फीसदी से अधिक हो जाता है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है।
यह डेटा गंभीर चिंताओं का कारण बन गया है। सवाल यह है कि क्या यह अवैध घुसपैठ का संकेत है? पूर्वोत्तर सीमाओं से सटे इन जिलों में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की आशंकाएं पहले से ही जताई जाती रही हैं। इतनी अधिक संख्या में अतिरिक्त आधार कार्डों का जारी होना इन संदेहों को मजबूत करता है। किसके नाम पर ये अतिरिक्त आधार बनाए जा रहे हैं? बिना दस्तावेजों के विदेशी नागरिकों को यदि अवैध रूप से आधार कार्ड दिए गए हैं, तो यह न सिर्फ चुनावी प्रक्रिया बल्कि सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग का भी बड़ा खतरा है।
क्या यही कारण है कि विपक्ष और वामपंथी लॉबी आधार को नागरिकता का प्रमाण बनाने पर जोर देते हैं? क्योंकि अगर आधार नागरिकता का प्रमाण बनता है, तो ऐसे अवैध आधार कार्डधारी भी कानूनी रूप से भारतीय नागरिक बन सकते हैं।
रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब पश्चिम बंगाल पर भी सवाल उठ रहे हैं, जहां ममता बनर्जी सरकार पहले ही एनआरसी और सीएए के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। अनुमान है कि वहां की स्थिति भी बिहार से अलग नहीं होगी।
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