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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 28 सितंबर (आईएएनएस)। भारत में डायबिटीज की बढ़ती संख्या के साथ ही डायबिटिक रेटिनोपैथी नामक आंखों की एक गंभीर बीमारी तेजी से बढ़ रही है। यह बीमारी दृष्टि हानि का एक प्रमुख कारण बनती जा रही है और अगर समय पर इलाज न हो तो इससे पूरी तरह अंधापन भी हो सकता है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी एक ऐसी स्थिति है जो डायबिटीज के कारण आंख के रेटिना (पर्दे) की छोटी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाती है। जब ब्लड शुगर का स्तर लंबे समय तक उच्च रहता है, तो ये रक्त नलिकाएं कमजोर होकर लीक होने लगती हैं या उनमें खून बहने लगता है। इस वजह से आंखों में सूजन, घाव और असामान्य रक्त वाहिकाओं बन जाती हैं, जिसे डायबिटिक मैक्युलर एडिमा (डीएमई) कहा जाता है। ये सभी बदलाव दृष्टि को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
डायबिटिक रेटिनोपैथी के शुरुआती चरण में आमतौर पर कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते। मरीज को अपनी नजर कमजोर होती महसूस हो या धुंधलापन महसूस होने पर ही समस्या का पता चलता है। इसलिए बीमारी अक्सर तब तक अनदेखी रह जाती है जब तक इसका असर बढ़ चुका होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यही कारण है कि ज्यादातर मरीज समय पर आंखों की जांच नहीं कराते और इलाज में देरी हो जाती है।
भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बहुत अधिक है। राष्ट्रीय नेत्ररोग सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, भारत में 50 साल से ऊपर के लगभग 12 प्रतिशत लोग डायबिटीज से प्रभावित हैं। इनमें से करीब 17 प्रतिशत को डायबिटिक रेटिनोपैथी है, लेकिन सिर्फ 10 प्रतिशत ही अपनी आंखों की जांच कराते हैं, जिससे समय पर बीमारी का पता लगाना और इलाज संभव नहीं हो पाता।
आमतौर पर डायबिटिक मैक्यूलर एडिमा और रेटिनोपैथी के इलाज में लेजर थेरेपी और एंटी-वीईजीएफ इंजेक्शन का प्रयोग होता रहा है। ये इलाज सूजन कम करते हैं और नई असामान्य रक्त वाहिकाओं के विकास को रोकते हैं। हाल ही में नई तकनीकों में बाइस्पेसिफिक एंटीबॉडीज को विकसित किया गया है, जो एक साथ कई रोग प्रक्रियाओं को लक्षित करती हैं और प्रभावी इलाज में मददगार साबित हो रही हैं। ये नई दवाएं विशेष रूप से उन देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं जहां डायबिटीज तेजी से बढ़ रहा है।
एम्स के आरपी सेंटर के प्रोफेसर डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने कहा है कि डायबिटीज पहले से ही भारत में महामारी बन चुका है और डायबिटिक रेटिनोपैथी भी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रही है। उन्होंने कहा कि देश में जागरूकता बढ़ाने और स्क्रीनिंग के लिए व्यापक पहल जरूरी है। उनका लक्ष्य है कि 2030 तक कम से कम 80 प्रतिशत डायबिटीज रोगियों की आंखों की जांच सुनिश्चित की जाए, जिससे अंधेपन को कम किया जा सके और लोगों की जीवन गुणवत्ता बेहतर हो।
--आईएएनएस
पीके/एएस
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