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Kumbh mela 2019 : जानें कुंभ मेला की क्या है कहानी, क्यों माना गया है पवित्र

कुंभ पर्व के संदर्भ में पुराणों में तीन अलग-अलग कथाएं मिलती हैं.

Updated on: 26 Dec 2018, 04:15 PM

नई दिल्ली:

कुंभ का महत्व

कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व कहा गया है. इस पर्व पर स्नान, दान, ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात भी कही जाती है. कुंभ का बौद्धिक, पौराणिक, ज्योतिषीय के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार भी है. वेद भारतीय संस्कृति के आदि ग्रंथ हैं. कुंभ का वर्णन वेदों में भी मिलता है. कुंभ का महत्व न केवल भारत में वरन् विश्व के अनेक देशों में है. इस तरह कुंभ को वैश्विक संस्कृति का महापर्व कहा जाय, तो गलत न होगा. चूंकि इस दौरान दुनियां के अनेक देशों से लोग आते हैं और हमारी संस्कृति में रचने-बसने की कोशिश करते हैं, इसलिए कुंभ का महत्व और बढ़ जाता है. कुंभ पर्व प्रत्येक 12 वर्ष पर आता है. प्रत्येक 12 वर्ष पर आने वाले कुंभ पर्व को अब शासन स्तर से महाकुंभ और इसके बीच 6 वर्ष पर आने वाले पर्व को कुंभ की संज्ञा दी गयी है. पुराणों में कुंभ की अनेक कथाएं मिलती हैं. भारती जनमानस में तीन कथाओं का विशेष महत्व है.

कुंभ की कथाएं

कुंभ पर्व के संदर्भ में पुराणों में तीन अलग-अलग कथाएं मिलती हैं. प्रथम कथा के अनुसार कश्यप ऋषि का विवाह दक्ष प्रजापति की पु़त्रयों दिति और अदिति के साथ हुआ था. अदिति से देवों की उत्पत्ति हुयी तथा दिति से दैत्य पैदा हुये. एक ही पिता की सन्तान होने के कारण दोनों ने एक बार संकल्प लिया कि वे समुद्र में छिपी हुई बहुत सी विभूतियों एवं संपत्ति को प्राप्त कर उसका उपभोग करें. इस प्रकार समुद्र मंथन एक मात्र उपाय था. समुद्र मंथनोपरान्त चौदह रत्न प्राप्त हुए जिनमें से एक अमृत कलश भी था. इस अमृतकलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध छिड़ गया, क्योंकि उसे पीकर दोनों लोअमरत्व की प्राप्ति करना चाह रहे थे, स्थिति बिगड़ते देख देवराज इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को संकेत किया और जयंत अमृत कलश लेकर भाग चला. इस पर दैत्यों ने उसका पीछा किया. पीछा करने पर देवताओं और दैत्यों पर बारह दिनों तक भयंकर संघर्ष हुआ. संघर्ष के दौरान अमृत कुंभ को सुरक्षित रखने में वृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा ने बड़ी सहायता की..

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वृहस्पति ने दैत्यों के हाथों में जाने से कुंभ को बचाया. सूर्य ने कुंभ की फूटने से रक्षा की और चंद्रमा ने अमृत छलकने नहीं दिया. फिर भी, संग्राम के दौरान मची उथल-पुथल से अमृत कुंभ से चार बूंदें छलक ही गयीं. ये चार स्थानों पर गिरीं. इनमें से एक गंगा तट हरिद्वार में, दूसरी त्रिवेणी संगम प्रयागराज में, तीसरी क्षिप्रा तट उज्जैन में और चौथी गोदावरी तट नासिक में. इस प्रकार इन चार स्थानों पर अमृत-प्राप्ति की कामना से कुंभ पर्व मनाया जाने लगा. दूसरी कथा के अनुसार अपने क्रोध के लिए विख्यात महर्षि दुर्वासा ने किसी बात पर प्रसन्न होकर देवराज इंद्र को एक दिव्य माला प्रदान की, किन्तु अपने घमण्ड में चूर होकर इन्द्र ने उस माला को ऐरावत के मस्तक पर रख दिया. ऐरावत ने माला लेकर उसे पैरों तले रौंद डाला. यह देखकर महर्षि दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर इन्द्र को शाप दे दिया. दुर्वासा के शाप से सारे संसार में हाहाकार मच गया. रक्षा के लिए देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र-मंथन किया, जिसमें से अमृत कुंभ निकला, किन्तु यह नागलोक में था.

अतः इसे लेने के लिए पक्षिराज गरूड़ को जाना पड़ा. नागलोक से अमृत घट लेकर गरूड़ को वापस आते समय हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार स्थानों पर कुंभ को रखना पड़ा और इसी कारण ये चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक कुंभस्थल के नाम से विख्यात हो गये. तीसरी कथा यह मिलती है कि एक बार प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों-विनता और कद्रू के बीच इस बात पर विवाद हो गया कि सूर्य के साथ के अश्व काले हैं या सफेद.

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विवाद बढ़ने पर दोनों के बीच शर्त यह तय हुई कि जो हार जायेगी वह दासी बनेगी. रानी कद्रू ने अपने पुत्र नागराज वासुकि की सहायता से अश्वों के श्वेत रंग को काला कर दिया, जिससे विनता की हार हुई. अंततः विनता ने कद्रू से प्रार्थना की कि वह उसे दासीत्व से मुक्त कर दें. कद्रू ने पुनः शर्त रखी कि यदि वे नागलोक में रखे अमृत घट को उसे लाकर दे दे तो दासीत्व से मुक्त हो सकती है. विनता ने अपने पुत्र गरूड़ को इस कार्य में लगा दिया.

गरूड़ जब अमृत घट लेकर आ रहे थे तो रास्ते में इंद्र ने उन पर आक्रमण कर दिया. संघर्ष के कारण घट से अमृत की कुछ बूंदें छलककर चार अलग-अलग स्थान पर गिरीं और उन्हीं स्थानों पर कुंभ पर्व होने लगा. कुंभ की कथाओं के अनुसार देवता और दैत्यों में बारह दिनों तक जो संघर्ष चला था, उस दौरान अमृत कुंभ से अमृत की जो बूंदें छलकी थीं और जिन स्थानों पर गिरी थीं, वहीं वहीं पर कुंभ मेला लगता है.क्योंकि देवों के इन बारह दिनों को बारह मानवीय वर्षों के बराबर माना गया है, इसलिए कुंभ पर्व का आयोजन बारह वर्षों पर होता है. जिस दिन अमृत कुंभ गिरने वाली राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग हो उस समय पृथ्वी पर कुंभ होता है. तात्पर्य यह है कि राशि विशेष में सूर्य और चंद्रमा के स्थित होने पर उक्त

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चारों स्थानों पर शुभ प्रभाव के रूप में अमृत वर्षा होती है और यही वर्षा श्रद्धालुओं के लिए पुण्यदायी मानी गयी है. इस प्रकार से वृष के गुरू में प्रयागराज, कुंभ के गुरू में हरिद्वार, तुला के गुरू में उज्जैन और कर्क के गुरू में नासिक का कुंभ होता है.सूर्य की स्थिति के अनुसार कुंभ पर्व की तिथियां निश्चित होती हैं.मकर के सूर्य में प्रयागराज, मेष के सूर्य में हरिद्वार, तुला के सूर्य में उज्जैन और कर्क के सूर्य में नासिक का कुंभ पर्व पड़ता है.