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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। कफ सिरप से हो रही मौतें एक बेहद चिंताजनक विषय है, खासकर मध्य प्रदेश और राजस्थान से हाल ही में बच्चों की मौत के मामले ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। सर गंगा राम अस्पताल के बाल चिकित्सा आईसीयू सह-निदेशक डॉ. धीरेन गुप्ता ने इस मुद्दे पर विस्तार से बात की।
उनका कहना है कि यह कोई नई समस्या नहीं है। भारत और अन्य देशों में पिछले कई वर्षों से कफ सिरप से मौतों के मामले सामने आते रहे हैं।
डॉ. गुप्ता के अनुसार, मुख्य समस्या यह है कि इंसानों के उपयोग के लिए जो फार्माकोलॉजिकल ग्रेड के इंग्रेडिएंट होते हैं, उनकी जगह अक्सर सस्ते और कम गुणवत्ता वाले इंडस्ट्रियल ग्रेड इंग्रेडिएंट्स का उपयोग किया जाता है। इससे सिरप में एथिलीन ग्लाइकॉल जैसा जहरीला तत्व मिल जाता है, जो किडनी को नुकसान पहुंचाता है और किडनी फेलियर का कारण बनता है। कफ सिरप में यह जहरीला पदार्थ कई बार इतना गंभीर रूप अख्तियार कर लेता है कि इससे बच्चों की मौत भी हो जाती है।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि कफ सिरप तीन चरणों में बच्चे को नुकसान पहुंचाता है। पहले सिरप पीने के बाद उल्टी, पेट दर्द और दस्त जैसी समस्याएं होती हैं। दूसरे चरण में किडनी में क्रिस्टल बन जाते हैं, जिससे किडनी फेलियर हो जाता है। तीसरे चरण में दिमाग पर असर होता है। यह प्रक्रिया बेहद घातक होती है।
डॉ. गुप्ता ने यह भी बताया कि कफ सिरप की जरूरत कई बार असल में नहीं होती। खांसी शरीर की एक नैसर्गिक प्रक्रिया है, जो गले या फेफड़ों में फंसी हुई चीजों को बाहर निकालने का काम करती है।
डॉ. गुप्ता के अनुसार, सूखी खांसी और गीली खांसी के लिए अलग-अलग उपाय होते हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चों में खांसी के पीछे सांस के मार्ग में कोई ब्लॉकेज होता है, जो अस्थमा जैसे रोगों से जुड़ा होता है। ऐसे में खांसी दबाने की बजाय सांस के मार्ग को खोलने पर ध्यान देना चाहिए।
डॉ. गुप्ता ने सरकार से आग्रह किया है कि कफ सिरप पर कड़ाई से नियंत्रण किया जाए और गुणवत्ता जांच को सख्त बनाया जाए। कई बार कंपनियां सस्ते और घटिया सामग्री का उपयोग कर कफ सिरप बनाती हैं, जिससे जनता को भारी नुकसान होता है। इसके अलावा, आम जनता को भी जागरूक होना चाहिए और बिना डॉक्टर की सलाह के कफ सिरप का सेवन नहीं करना चाहिए।
--आईएएनएस
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