मुंबई, 29 जून (आईएएनएस)। कभी-कभी जिंदगी में जो चीजें इत्तेफाक से होती हैं, वही किस्मत की दिशा बदल देती हैं। ऐसा ही कुछ हुआ था कल्याणजी के साथ, जो आगे चलकर हिंदी फिल्मों के मशहूर संगीतकार बने। कल्याणजी का पूरा नाम कल्याणजी वीरजी शाह था। उनका जन्म 30 जून 1928 को गुजरात के कच्छ के कुंदरोडी में हुआ था। कुछ साल बाद उनका परिवार गुजरात से मुंबई आया और यहां उनके पिताजी वीरजी शाह ने किराने की एक छोटी सी दुकान शुरू की।
रोज की तरह दुकान चल रही थी, ग्राहक आते-जाते रहते थे, लेकिन एक ग्राहक ऐसा भी था जो हर बार उधार पर सामान ले जाता और पैसे देने का नाम नहीं लेता। जब उधारी बढ़ गई और पैसे देने का सवाल उठा, तो उस शख्स ने कुछ और ही पेशकश की। उसने कहा, उधारी के बदले मैं तुम्हारे बेटों को संगीत सिखा दूंगा। कौन जानता था कि यही सौदा दो मासूम बच्चों के भविष्य को सुरों से भर देगा। उधारी चुकाने का यह तरीका एक गुरु-शिष्य के रिश्ते में बदल गया। उसी पल से कल्याणजी और उनके भाई आनंदजी की जिंदगी में संगीत ने पहली बार दस्तक दी थी। वो सुर, जो किसी उधारी की भरपाई थे, कल्याणजी और आनंदजी के दिल को छूने लगे और धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई, रियाज का समय बढ़ने लगा और संगीत जैसे उनके खून में उतरने लगा।
ये वो दौर था जब लोग बड़े-बड़े उस्तादों से पैसे देकर सीखते थे, और कल्याणजी को ये ज्ञान एक उधारी की वजह से मिल गया था। समय के साथ हुनर निखरता गया और दोनों भाई आगे चलकर अपनी मेहनत और लगन से हिंदी सिनेमा की पहचान बन गए। ये किस्सा कल्याणजी आनंदजी के आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद है।
संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी ने मिलकर एक से बढ़कर फिल्मों के गानों में संगीत दिया, जिसमें डॉन, सफर, कोरा कागज जैसी फिल्में शामिल हैं।
कल्याणजी ने अपने भाई आनंदजी के साथ मिलकर कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी के नाम से एक आर्केस्ट्रा कंपनी बनाई थी, जो अलग-अलग शहरों में जाकर परफॉर्मेंस दिया करती थी।
कल्याणजी का पहला फिल्मी काम 1959 में रिलीज हुई फिल्म सम्राट चंद्रगुप्त थी। उस समय आनंदजी आधिकारिक रूप से उनके साथ नहीं जुड़े थे, लेकिन उन्होंने भरपूर साथ दिया था। बाद में आनंदजी ने आधिकारिक तौर पर कल्याणजी के साथ काम करना शुरू किया और उसी साल 1959 में रिलीज हुई फिल्मों सट्टा बाजार और मदारी के लिए संगीत बनाया। उनकी पहली बड़ी हिट 1960 में आई छलिया थी। 1965 में आई हिमालय की गोद में और जब जब फूल खिले जैसी फिल्मों ने उन्हें बॉलीवुड के सफल संगीतकारों की फेहरिस्त में ला खड़ा किया।
कल्याणजी-आनंदजी ने 250 से ज्यादा फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें से 17 फिल्में गोल्डन जुबली और 39 सिल्वर जुबली रहीं। उन्होंने अपने समय के महान गायकों जैसे मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, आशा भोसले, मन्ना डे, मुकेश और महेंद्र कपूर के साथ काम किया। फिल्म कोरा कागज के गाने मेरा जीवन कोरा कागज के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के लिए पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
1992 में भारत सरकार ने संगीत क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया। उनकी जोड़ी ने लता मंगेशकर के लिए 326 गीत तैयार किए, जिनमें से 24 गीत उन्होंने अपने पहले नाम कल्याणजी वीरजी शाह के तहत और बाकी 302 गीत कल्याणजी-आनंदजी के नाम से दिए।
मन्ना डे की आवाज से सजी मशहूर कव्वाली यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी... आज भी लोगों के दिलों में बसा है। कल्याणजी वीरजी शाह ने 24 अगस्त 2000 को दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनके संगीत का खजाना आज भी भरा हुआ है। जिससे उनके अमर तराने गाहे बगाहे दिलों के तार छेड़ जाते हैं।
--आईएएनएस
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