नई दिल्ली, 16 जून (आईएएनएस)। जब बात मराठा साम्राज्य की होती है, तो छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज के नाम जहन में उभरते हैं। दो ऐसे वीर योद्धा, जिन्होंने स्वराज की स्थापना और उसके विस्तार को अपने रक्त और शौर्य से सींचा। लेकिन, इस गौरवशाली साम्राज्य की नींव में एक ऐसी महान नारी का योगदान शामिल है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। राजमाता जीजाबाई मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की माता और शाहजी भोंसले की पत्नी थीं।
जीजाबाई एक ऐसी नारी थीं, जिन्होंने महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज को जन्म दिया और अदम्य साहस, बुद्धिमत्ता और धर्मनिष्ठा से मराठा साम्राज्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी मार्गदर्शन और शिक्षाओं ने शिवाजी को वह नजरिया और साहस प्रदान किया, जिसने मराठा साम्राज्य को अजेय बनाया और इस विरासत को संभाजी महाराज ने आगे बढ़ाया। जीजाबाई का जीवन मराठा गौरव का वह आधार स्तंभ है, जिसके बिना स्वराज की कहानी अधूरी है।
जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को महाराष्ट्र के सिन्दखेड़ में जाधव परिवार में हुआ था। उनके पिता लखुजी जाधव एक प्रभावशाली मराठा सरदार थे। बचपन से ही जीजाबाई में साहस, बुद्धि और धर्म के प्रति गहरी निष्ठा थी। उनकी शिक्षा-दीक्षा में युद्धकला, शास्त्रों का ज्ञान और प्रशासनिक कौशल शामिल थे, जो उस समय की महिलाओं के लिए असाधारण था।
जीजाबाई की बहुत ही कम उम्र में शाहजी भोंसले के साथ शादी हुई, जो निजामशाही सल्तनत के एक प्रमुख सरदार थे। जीजाबाई ने आठ बच्चों को जन्म दिया, जिनमें से छह बेटियां और दो बेटे थे। इन्हीं बच्चों में से एक शिवाजी महाराज भी थे। जीजाबाई ने अपने बच्चों की परवरिश पर विशेष ध्यान दिया, खासकर शिवाजी को उन्होंने स्वराज की स्थापना के लिए तैयार किया। शाहजी के अधिकांश समय युद्धों और राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहने के कारण, जीजाबाई ने ही परिवार और शिवाजी के प्रारंभिक प्रशिक्षण की जिम्मेदारी संभाली।
बताया जाता है कि जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से ही वीरता, धर्म और स्वतंत्रता के आदर्श सिखाए। उन्होंने रामायण, महाभारत और पुराणों की कहानियों के माध्यम से शिवाजी में देशभक्ति और नैतिकता के बीज बोए। जब शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना का संकल्प लिया, तो उस दौरान जीजाबाई न केवल उनकी प्रेरणा बनीं, बल्कि कठिन समय में उनकी सलाहकार भी रहीं। उन्होंने पुणे और आसपास के क्षेत्रों का प्रशासन संभाला और किलों की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जीजाबाई धार्मिक थीं और हिंदू धर्म के प्रति उनकी अटूट निष्ठा थी। उन्होंने मंदिरों के निर्माण और धार्मिक कार्यों को प्रोत्साहन दिया। साथ ही, वह सामाजिक समानता और न्याय की पक्षधर थीं, जिसका प्रभाव शिवाजी के शासन में भी दिखाई देता है।
जीजाबाई का निधन 17 जून 1674 को रायगढ़ किले में हुआ। उनकी मृत्यु के समय तक शिवाजी ने मराठा साम्राज्य को एक मजबूत साम्राज्य के रूप में स्थापित कर लिया था, जिसमें उनकी मां की शिक्षाओं और मार्गदर्शन का बड़ा योगदान था।
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