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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। इजरायल में 7 अक्टूबर 2023 के बाद एक ऐसी प्रक्रिया तेजी से बढ़ी है, जो सुनने में भावनात्मक भी है और वैज्ञानिक रूप से बेहद जटिल भी! पोस्ट ह्यूमस स्पर्म रिट्रीवल (पीएसआर) यानी किसी पुरुष की मृत्यु के बाद उसका स्पर्म निकालकर संरक्षित करने की प्रक्रिया तेजी से विकसित हुई है। ऐसा इसलिए ताकि भविष्य में उसका परिवार उस शख्स के बच्चे में उसका अंश देख पाए।
7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए युद्ध और लगातार चले हमलों के बाद यह प्रक्रिया देश में तेजी से बढ़ी है। परिवार अपने जवान बेटों, पतियों और पार्टनरों की याद को आगे बढ़ाने के लिए इस विकल्प को अपनाने लगे हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि इजरायल में यह प्रक्रिया किसी कहानी जैसी नहीं, बल्कि सरकार, डॉक्टरों और फैमिली कोर्ट द्वारा तय नियमों के तहत वास्तविकता बन चुकी है। मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ की गाइडलाइन साफ कहती है कि मौत के बाद जितनी जल्दी रिकवरी की जाए, स्पर्म मिलने की संभावना उतनी ही अधिक रहती है। आमतौर पर 24 घंटे के भीतर किए गए रिकवरी में लगभग 75 फीसदी मामलों में जीवित स्पर्म मिल जाता है और 72 घंटे तक भी कुछ कोशिकाएं बची रह सकती हैं। यही वजह है कि परिवार समय गंवाए बिना फर्टिलिटी क्लिनिक और अस्पतालों से संपर्क करते हैं।
अश्केलोन एकेडमिक कॉलेज की महामारी विज्ञानी और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रो. बेला सावित्स्की ने हाल ही में द इजरायल जर्नल ऑफ हेल्थ पॉलिसी रिसर्च में 600 यहूदी इजरायली पुरुषों के पीएसआर के प्रति दृष्टिकोण का सर्वेक्षण करते हुए एक अध्ययन प्रकाशित किया है। अब वह आईडीएफ से गुहार लगा रही हैं कि सैनिकों के सेना में भर्ती होने पर इस प्रक्रिया के लिए सहमति ली जाए, ताकि इच्छुक परिवार का काम समय पर हो जाए।
सावित्स्की ने बताया कि निजी तौर पर वो इस दुख से गुजरी हैं इसलिए समय की सीमा को अहम मानती हैं। द टाइम्स ऑफ इजरायल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, जब मेरा 21 वर्षीय बेटा, जोनाथन सावित्स्की, 7 अक्टूबर को गाजा सीमा के पास किसुफिम सैन्य चौकी की रक्षा करते हुए मारा गया, तो उसके शव की पहचान होने में दो दिन लग गए।
फिर, जब सैनिक हमारे घर खबर देने आए, तो जोनाथन के गुजरे 48 घंटे हो चुके थे, ऐसे में मैं वो नहीं कर पाई जिसकी इच्छा थी।
2023 से 2025 के बीच मिली रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस अवधि में कुल 236 आवेदन पीएसआर के लिए किए गए, जिनमें से 229 रिकवरी सफल रहीं। यानी सफलता की दर 97 फीसदी रही है, जो किसी भी चिकित्सा प्रक्रिया के लिए बहुत ऊंची दर मानी जा सकती है। हैरानी की बात यह नहीं कि यह संख्या इतनी बड़ी है, बल्कि यह कि अधिकांश आवेदन मृतकों की माओं और पिताओं की ओर से आए, और ये लगभग 77 फीसदी रहा। बहुत से माता-पिता का एक ही तर्क है, “हम अपने बेटे की वंश परंपरा खत्म नहीं होने देना चाहते।”
युद्ध के कारण कानूनी प्रक्रिया भी बदल गई है। पहले मृतक के माता-पिता को कोर्ट की मंजूरी लेनी पड़ती थी, लेकिन युद्धकाल में यह शर्त अस्थायी रूप से हटा दी गई ताकि समय पर रिकवरी हो सके। कई मामलों में डॉक्टरों ने मृत्यु के 37 घंटे बाद तक स्पर्म सफलतापूर्वक निकाला, जैसा कि एक वैज्ञानिक अध्ययन में दर्ज है, जिसमें 28 मामलों पर रिसर्च हुई और 89 में जीवित स्पर्म मिले।
इन सभी बातों के बीच सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इस प्रक्रिया के पीछे का भावनात्मक पहलू। बहुत से परिवार इसको एक तरह का “भावनात्मक समापन” मानते हैं: उनका मानना है कि भले ही व्यक्ति चला गया, लेकिन उसकी विरासत एक बच्चे के रूप में आगे बढ़ सकती है। कई पार्टनर यह कहती हैं कि वे इससे “अपनी जिंदगी में उसके हिस्से को जिंदा रखती हैं।” वहीं डॉक्टरों के बीच नैतिक बहस भी जारी है—मृत व्यक्ति की इच्छा कैसे सुनिश्चित की जाए? क्या सिर्फ परिवार की भावना पर्याप्त है? क्या बच्चा पैदा होने के बाद भविष्य में कोई कानूनी विवाद खड़ा हो सकता है?
इजरायल की सामाजिक संरचना, परिवार का गहरा महत्व, सैन्य संस्कृति और युद्ध की त्रासदी, इन सबने मिलकर पीएसआर को एक अनोखी लेकिन वास्तविक सामाजिक प्रक्रिया बना दिया है। फर्टिलिटी क्लीनिकों में अब यह “रेयर” नहीं रहा बल्कि एक ऐसी प्रक्रिया बन गई है जिसे डॉक्टर नियमित रूप से करते हैं, जिसमें मजबूत लैब तकनीक, क्रायो-फ्रीजिंग और तेज निर्णय लेने की जरूरत होती है।
पीएसआर इजरायल में सिर्फ मेडिकल प्रोसीजर नहीं रहा बल्कि एक कहानी का रूप ले चुका है। एक ऐसी कहानी जिसमें परिवार का दुख, उम्मीद, विज्ञान और युद्ध सब एक साथ चलते हैं। जंग ने जितनी जिंदगियां छीनी हैं, परिवार उसी दर्द में नई जिंदगी की तलाश कर रहे हैं।
--आईएएनएस
केआर/
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