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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। उड़ान हमेशा से एक आकर्षण का विषय रहा है। राइट ब्रदर्स की पहली उड़ान से लेकर स्पेस शटल के अंतरिक्ष में पहुंचने तक, हर पड़ाव ने इंसान को नए सपने दिए, लेकिन 27 अगस्त की तारीख इतिहास के उस अध्याय से जुड़ी, जिसने भविष्य की दिशा बदल दी। इसी दिन, साल 1939 में जर्मनी के वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला जेट एयरक्राफ्ट हेइंकेल एचई-178 आसमान में उड़ाया।
इस क्रांतिकारी विमान के पीछे जर्मन वैज्ञानिक हांस योआखिम पाब्स्ट फॉन ओहेन थे। 1930 के दशक की शुरुआत में ही उन्होंने जेट इंजन की कल्पना की और 1935 में इसका पेटेंट कराया। उनकी सोच थी, क्या विमान बिना पिस्टन इंजन के, सिर्फ गैस टर्बाइन से उड़ सकता है?
इसी सोच के साथ 1936 में उनकी मुलाकात जर्मनी के मशहूर विमान निर्माता एर्न्स्ट हाइकल से हुई। हाइकल इस विचार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत ओहेन और उनकी टीम को अपनी कंपनी में काम पर रख लिया। हाइकल का लक्ष्य साफ था, हम एक ऐसा विमान बनाएंगे जिसे दुनिया ने कभी देखा न हो।
ओहेन और उनकी टीम ने सबसे पहले एचईएस-1 इंजन बनाया, जो हाइड्रोजन से चलता था। यह सिर्फ परीक्षण के लिए था, लेकिन सफल रहा। इसके बाद एचईएस-2 और फिर एचईएस-3 इंजन तैयार किए गए, जिन्हें पेट्रोल (गैसोलीन) से चलाया जा सकता था। इन्हीं इंजनों के आधार पर विमान डिजाइन करने का काम शुरू हुआ। इस काम का नेतृत्व हांस रेगनर और उनकी टीम ने किया। यह विमान पारंपरिक दिखता था, लेकिन उसकी ताकत बिल्कुल नई थी। इसमें आगे की तरफ नाक जैसी एयर-इनटेक दी गई थी जिससे हवा इंजन में जाती थी, और पीछे से आग की तरह धुआं निकलता था।
27 अगस्त 1939 की सुबह, जर्मनी के रोस्टॉक एयरफील्ड पर इतिहास लिखा गया। टेस्ट पायलट एरिक वार्सिट्ज ने एचई-178 को उड़ान भराई। उड़ान सिर्फ 6 मिनट की थी, लेकिन यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए नींव रख गई।
पायलट वार्सिट्ज़ ने बाद में लिखा, शुरुआत में विमान धीरे चला, लेकिन 300 मीटर बाद वह तेजी से भागने लगा। इंजन की गूंज अलग ही अहसास दे रही थी। जब विमान जमीन से उठा, तो लगा जैसे हम भविष्य को छू रहे हों।
दिलचस्प बात यह थी कि एचई-178 का पूरा विकास गुप्त रखा गया था। जर्मन वायु मंत्रालय को इसकी जानकारी तक नहीं थी। हाइकल ने इसे निजी पहल के तौर पर बनाया था, ताकि वे प्रतिस्पर्धियों से आगे निकल सकें। लेकिन, जब इसे अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया गया तो ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। उस समय तक जर्मनी पोलैंड पर आक्रमण कर चुका था और पारंपरिक पिस्टन इंजन वाले विमान युद्ध में पर्याप्त साबित हो रहे थे। परिणामस्वरूप, एचई-178 को आगे बढ़ाने में सरकारी रुचि नहीं दिखाई गई।
एचई-178 की स्पीड करीब 600-700 किमी/घंटा तक पहुंची, लेकिन उसका इंजन ज्यादा देर तक नहीं चल पाता था। यह विमान उत्पादन के लिए नहीं बल्कि प्रयोगशाला की उड़ान थी। बाद में जर्मनी ने एचई-280 और मेसर्सचिमिट एमई-262 जैसे जेट फाइटर बनाए, लेकिन तब तक युद्ध का समीकरण बदल चुका था। दुर्भाग्य से, एचई-178 का असली मॉडल 1943 में बमबारी में नष्ट हो गया। आज इसकी सिर्फ एक प्रतिकृति जर्मनी के रोस्टॉक-लागे एयरपोर्ट पर मौजूद है।
भले ही यह विमान कभी युद्ध में नहीं उतरा, लेकिन एचई-178 ने साबित किया कि आसमान अब सिर्फ पिस्टन इंजनों का नहीं रहेगा। आने वाले दशकों में जेट इंजन ने नागरिक उड्डयन से लेकर युद्धक विमानों तक हर जगह क्रांति ला दी।
--आईएएनएस
पीएसके/डीएससी
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