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bramhos missile (ani)
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bramhos missile (ani)
भारतीय वायुसेना ने चार दिवसीय ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया. इस दौरान भारतीय वायुसेना ने ब्रह्मोस मिसाइलों का उपयोग किया. मिसाइलों के सटीक हमलों को पूरी दुनिया देखा और अब इस मिसाइल की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. विश्व के कई देश इस मिसाइल की डिमांड कर रहे हैं. ऐसा पहली है बार कि किसी स्वदेशी हथियार की इतनी डिमांड हो रही है. सुपरसोनिक मिसाइलों की सटीकता और गति ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है. मिसाइलों को जमीन, हवा या समुद्र से टारगेट किया जा सकता है. यह मैक 3 की गति से ट्रैवल करती और अपने टारगेट को तबाह करने में सक्षम है. ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि भारत के पास फिलहाल कितनी ब्रह्मोस मिसाइलें हैं. वह वर्ष में कितनी मिसाइलों का निर्माण करता है. किस तरह से इसकी डिमांड को पूरा किया जा सकता है.
भारत में ब्रह्मोस मिसाइलों की संख्या को लेकर अभी पूरी जानकारी सामने नहीं आई है. एक अनुमान के अनुसार, 1,200 से 1,500 से ज्यादा का भंडार है. अक्टूबर 2020 में भारत और चीन के तनाव के बीच ड्रैगन का दावा था कि भारत के पास ब्रह्मोस की संख्या 14,000 थी. हालांकि अभी किसी तरह की पुष्ट जानकारी सामने नहीं आई है. हाल ही में लखनऊ ब्रह्मोस यूनिट फैसिलिटी में हर वर्ष 80 से 100 ब्रह्मोस मिसाइलों का प्रोडक्टशन करने वाली है. हर वर्ष 100-150 नेक्सट जनरेशन वेरिएंट में बढ़ोतरी की योजना है फिलीपींस और वियतनाम के संग डील भारत ने 19 अप्रैल 2024 को फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें दीं. जनवरी 2022 में दोनों देशों ने 375 मिलियन डॉलर के सौदर पर हस्ताक्षर किए. भारत ने वियतनाम के साथ भी डील की है. सुपरसोनिक मिसाइल को लेकर नई दिल्ली में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
आपको बता दें कि ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, वेनेजुएला, मिस्र, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, थाईलैंड, सिंगापुर, ब्रुनेई और ओमान जैसे कई देशों ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम खरीदने को लेकर इच्छा जताई है.
एक सवाल यह खड़ा होता है कि क्या भारत किसी भी देश के साथ स्वतंत्र रूप से ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात कर सकता है. इसका जवाब है कि ब्रह्मोस भारत के डिफेंस एंड रिसर्च डेवसपमेंट ओर्गनाइजेशन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया के संयुक्त प्रयास से तैयार हुई है. ऐसे में तीसरे देश में बिक्री को लेकर मास्को की मंजूरी मिलनी जरूरी है. दोनों देशों की मिसाइल तकनीक में 50-50 फीसदी की भागीदारी है. ऐसे में भारत को ब्रिकी से रूस की इजाजत लेनी होगी.