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Vande Matram Song: भारत की स्वतंत्रता की गूंज बन चुका वंदे मातरम् आज भी मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण की अद्भुत मिसाल है. 150 वर्ष पहले रचित यह राष्ट्रीय गीत समय के साथ केवल एक कविता नहीं रहा, बल्कि देशभक्ति की भावना का ऐसा स्तंभ बना जिसने आजादी के आंदोलन को नई दिशा दी. इसके इतिहास में साहित्य, संगीत, क्रांति और राष्ट्रभक्ति-सब एक साथ जुड़े हुए दिखाई देते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि एक वक्त ऐसा भी था जब इस गीत को गाने पर 5 रुपए का जुर्माना रखा गया था.
जब गीत गाने पर लगा था 5 रुपए जुर्माना
बता दें कि पश्चिम बंगाल के रंगपुर स्कूल में 200 स्टूडेंट्स की ओर से वंदे मातरम गीत गाया गया. लेकिन इस गीत को गाने पर इन छात्रों पर 5-5 रुपए का जुर्माना लगाया गया. ये वक्त था 1905 का. लेकिन अंग्रेजों को शायद यह नहीं पता था कि उनके इसी जुर्माने से इस गीत को लेकर देशभर में एक चिंगारी जलेगी और ब्रिटिश हुकूमत को जला डालेगी. ये गीत अंग्रेजों को विरोध का प्रतीक बन गया. ठीक एक साल बाद यानी 1906 में एक बड़ी आम सभा हुई और इस सभा में बड़ी संख्या में लोगों ने इस गीत को गाया. वहीं जब लोकमान्य गंगाधर तिलक को जेल भेजा गया तब भी क्रांतिकारियों ने इसी गीत के जरिए विरोध दर्ज कराया.
वंदे मातरम् की रचना और प्रकाशन
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1875 को वंदे मातरम् की रचना की थी. यह पहली बार बंगाली पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ. इसके बाद 1882 में उन्होंने इसे अपने प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया. इस उपन्यास ने वंदे मातरम् को व्यापक पहचान दिलाई और यह राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा बन गया.
गीत से आंदोलन का नारा बनने तक, ऐसा है इतिहास
- 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में वंदे मातरम् स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक नारा बन चुका था.
- 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार गाया.
- 7 अगस्त 1905 को बंगाल विभाजन के खिलाफ हो रहे स्वदेशी आंदोलन में यह गीत विरोध का मुख्य स्वर बन गया.
- 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में भारत का तिरंगा फहराया, जिस पर वंदे मातरम् अंकित था.
- कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में इसे राष्ट्रीय आयोजनों में गाए जाने वाले गीत के रूप में अपनाया गया.
- इन सभी घटनाओं ने वंदे मातरम् को केवल एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का सशक्त प्रतीक बना दिया.
वंदे मातरम् का राष्ट्रीय गीत बनना
आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने वंदे मातरम् को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया. जन गण मन को राष्ट्रगान घोषित किए जाने के साथ ही वंदे मातरम् को समान सम्मान और आदर के साथ राष्ट्रीय महत्व प्राप्त हुआ.
गीत की आत्मा था आनंदमठ
आनंदमठ एक ऐसे समूह की कहानी है जो मातृभूमि को देवी के रूप में पूजते हैं और उसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहते हैं. इसमें मातृभूमि को तीन रूपों में दर्शाया गया, दुर्भिक्ष की अवस्था, जागरण की अवस्था और समृद्धि की अवस्था. यही भाव वंदे मातरम् की पंक्तियों में झलकता है.
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, राष्ट्रवाद के अग्रदूत
19वीं सदी के महान साहित्यकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने उपन्यासों, कविताओं और निबंधों के माध्यम से राष्ट्रवाद की अलख जगाई. आनंदमठ, कपालकुंडला, दुर्गेशनंदिनी और देवी चौधरानी जैसी रचनाओं में उन्होंने समाज की समस्याओं और राष्ट्रीय चेतना को अभिव्यक्त किया. वंदे मातरम् उनकी साहित्यिक और राष्ट्रवादी विरासत का शिखर माना जाता है.
वंदे मातरम् 150 वर्षों की ऐसी ज्योति है जिसने देशभक्ति की राह को कभी अंधेरा नहीं होने दिया. यह इतिहास, संघर्ष, साहित्य और त्याग का मिला-जुला प्रतीक है और हर भारतीय के दिल में सदैव जीवित रहेगा.
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