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100 वर्ष की संघ यात्रा नए क्षितिज Photograph: (x/@RSSorg)
नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शताब्दी वर्षगांठ पर चल रही व्याख्यानमाला “100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज” के तीसरे दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कई अहम मुद्दों पर अपनी राय रखी. उन्होंने नई शिक्षा नीति, परंपरागत मूल्यों और समाज के बदलते स्वरूप पर खुलकर विचार व्यक्त किए.
विष को भी औषधि में बदल सके
मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा का मतलब केवल पढ़ना-लिखना नहीं है. वास्तविक शिक्षा वह है जो इंसान को सच्चा मनुष्य बनाए. ऐसी शिक्षा व्यक्ति को इतना विवेक देती है कि वह विष को भी औषधि में बदल सके. उन्होंने कहा कि सुशिक्षा का उद्देश्य केवल करियर या नौकरी पाना नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज और मानवीय मूल्यों के प्रति जिम्मेदारी जगाना जरूरी है.
आज भी कई आंतरिक विरोधाभास
संघ प्रमुख ने सरकारों के साथ संघ के रिश्तों पर भी बात की. उन्होंने कहा कि चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, हमारा सभी से रिश्ता अच्छा है. हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि व्यवस्था में कई आंतरिक विरोधाभास हैं. आज भी प्रशासनिक ढांचा वही है, जिसे अंग्रेजों ने शासन करने के लिए तैयार किया था. उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश आजाद हो चुका है, तो व्यवस्था भी देश की परंपराओं और समाज की जरूरतों के अनुरूप क्यों न बदली जाए.
माता-पिता का सम्मान करना...
भागवत ने शिक्षा में परंपरा और मूल्यों की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि यह धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक शिक्षा है. उन्होंने उदाहरण दिया कि माता-पिता का सम्मान करना किसी भी धर्म में गलत नहीं माना गया है. यह सार्वभौमिक मूल्य हैं, जिन्हें हर किसी को सीखना चाहिए. उनके अनुसार, अच्छी आदतें और नैतिकता धर्म से परे जाकर समाज को एकजुट करती हैं.
अंग्रेजी सीखने में क्या दिक्कत है?
अंग्रेजी भाषा को लेकर उठने वाले सवालों पर भागवत ने स्पष्ट किया कि अंग्रेजी सीखना कोई नुकसान नहीं है. उन्होंने बताया कि जब वह आठवीं कक्षा में थे, उनके पिता ने उन्हें चार्ल्स डिकेन्स का ऑलिवर ट्विस्ट पढ़ने को दिया. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने से उनका हिंदुत्व प्रेम कम नहीं हुआ. लेकिन उन्होंने कहा कि विदेशी साहित्य पढ़ने के चक्कर में प्रेमचंद जैसी भारतीय परंपरा की कहानियों को नजरअंदाज़कर दिया गया.
मदरसों और मिशनरी स्कूलों में होना चाहिए अनिवार्य
संघ प्रमुख का मानना है कि हर भाषा में एक लंबी और समृद्ध परंपरा छिपी है. बच्चों और युवाओं को अपनी भाषाओं का साहित्य भी पढ़ना चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया कि मिशनरी स्कूलों और मदरसों में भी इस तरह की शिक्षा को जगह मिलनी चाहिए, ताकि सभी को समाज और परंपरा की गहराई से पहचान हो सके.
100 वर्ष की संघ यात्रा नए क्षितिज तृतीय दिवस 28 अगस्त 2025 विज्ञान भवन दिल्ली https://t.co/rN713FHaOZ
— RSS (@RSSorg) August 28, 2025
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