Indus Water Treaty: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को निर्दोष नागरिकों पर हुए आतंकी हमले के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट सुरक्षा समिति की बैठक में कई कड़े फैसले लिए गए. इनमें सबसे ज़्यादा ध्यान खींचने वाला कदम रहा सिंधु जल संधि को ‘अस्थगित’ करने का फैसला. यह वही संधि है जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में दोस्ती और विश्वास के आधार पर लागू किया गया था.
प्रधानमंत्री मोदी ने इस हमले के बाद लगातार अपनी रैलियों में स्पष्ट कर दिया कि भारत अब पीछे हटने वाला नहीं है. हाल ही में एक जनसभा में उन्होंने कहा, “भारत का यह फैसला अब पाकिस्तान को पसीना-पसीना कर रहा है.”
क्या यह फैसला रातोंरात लिया गया?
बिलकुल नहीं. हाल ही में विदेश मामलों की स्थायी समिति की बैठक में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ कहा कि यह योजना कई वर्षों से धीरे-धीरे तैयार की जा रही थी. जल शक्ति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय समेत कई अहम विभाग इसमें शामिल रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार, “संधि को स्थगित करना एक प्रकार की स्थायी सर्जिकल स्ट्राइक है, क्योंकि यह पाकिस्तान को उसके सबसे संवेदनशील बिंदु पर चोट पहुंचाता है. सरकार के भीतर पिछले तीन वर्षों से इस विषय पर गंभीर चर्चा चल रही थी.”
पाकिस्तान की रुकावटें और भारत की विवशताएं
पाकिस्तान ने हमेशा इस संधि का दुरुपयोग किया है और भारत के भीतर किए जाने वाले किसी भी जल परियोजना के प्रयासों को रोकने की कोशिश की है. भारत इस संधि के तहत किसी भी निर्माण के लिए पाकिस्तान से छह महीने पहले अनुमति मांगने के लिए मजबूर था, लेकिन जवाब कभी समय पर नहीं मिलता था. अब जब आयोग ही निष्क्रिय हो गया है, तो ये बाधाएं स्वत समाप्त हो गई.
21वीं सदी की ज़रूरतों के अनुकूल नहीं है 1960 की संधि
पुराने इंजीनियरिंग मानकों पर आधारित यह संधि आज की जलवायु स्थितियों, बर्फबारी, ग्लेशियरों के पिघलने, जनसंख्या वृद्धि और स्वच्छ ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में नहीं रखती. ऐसे में इसका पुनर्विचार जरूरी था.
पाकिस्तान पर मनोवैज्ञानिक दबाव
पाकिस्तान एक निचले स्तर का देश है, जो सिंधु की नदियों पर काफी हद तक निर्भर है. इस संधि के अस्थगन से भारत को छह नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने का अधिकार मिल गया है. सरकार के एक अधिकारी के अनुसार, “अब पाकिस्तान को डेटा साझा नहीं किया जाएगा, न ही कोई जल आयुक्त कार्य करेगा. यह भारत का एक निर्णायक कदम है.”
विश्व बैंक को भी दी गई जानकारी
भारत ने पाकिस्तान को संधि के स्थगन की विधिवत जानकारी दी और विश्व बैंक को भी अपने निर्णय से अवगत कराया. विश्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि वह केवल “मध्यस्थ नहीं, बल्कि एक मात्र पर्यवेक्षक” की भूमिका निभा रहा है.
पानी की एक-एक बूंद भारत के लिए
जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने साफ कहा है, “पाकिस्तान को अब एक बूंद पानी भी नहीं दी जाएगी.” इस फैसले को लागू करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और जल संसाधन के विशेषज्ञों के साथ कई स्तरों की बैठकें की गई हैं.
इन बैठकों में तीन स्तर की योजना बनाई गई है.
- शॉर्ट टर्म: तुरंत प्रभाव में आने वाले निर्माण कार्य
- मिडिल टर्म: जल संग्रहण और डायवर्जन योजनाएं
- लॉंग टर्म: बांधों और सिंचाई परियोजनाओं का पुनर्गठन
पाकिस्तान की धमकी और भारत का जवाब
अब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “भीख का कटोरा” लेकर घूम रहा है, और कह रहा है कि भारत जल युद्ध छेड़ रहा है. पाकिस्तान की सेना ने भी भारत को धमकी दी है. लेकिन भारत इस बार किसी भी धमकी या मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है. सरकार ने साफ कहा है कि पाकिस्तान को आतंकवाद से मुंह मोड़ना होगा और पीओके पर स्पष्ट रुख अपनाना होगा, तभी कोई द्विपक्षीय बातचीत संभव होगी.
हर तरफ से पाकिस्तान को घेरने की तैयारी
भारत ने सिंधु जल संधि को अस्थगित कर केवल एक राजनयिक कदम नहीं उठाया है, बल्कि यह रणनीतिक, मनोवैज्ञानिक और कानूनी स्तर पर पाकिस्तान को चेतावनी देने वाली कार्यवाही है. अब भारत जल के माध्यम से अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहा है और यह साफ संदेश दे रहा है कि अब वह पुराने नियमों से बंधा नहीं रहेगा.