Waqf case: वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को खत्म हो गई है. कल यानी 17 अप्रैल को भी इस पर दोपहर 2 बजे सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों के केस को लेकर सरकार से बड़ा प्रश्न किया है. अदालत ने पूछा कि क्या वे मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में भागीदार बनाने की अनुमति देने को राजी है? इस बीच अदालत ने वक्फ कानून को लेकर पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा को लेकर चिंता व्यक्त की है. इस केस में अंतरिम आदेश पास करने को लेकर गुरुवार दोपहर 2 बजे सुनवाई होनी है. अदालत में सुनवाई को लेकर क्या बातें हुईं आइए जानने की कोशिश करते हैं.
याचिकाकर्ताओं के दावे
याचिकाकर्ताओं का यह दावा है कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है. यह धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है. अधिवक्ता कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने अदालत में तर्क रखा कि वक्फ इस्लाम का जरूरी और अभिन्न हिस्सा है. इस मामले में सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती.
सिब्बल के अनुसार, यह अधिनियम न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है बल्कि मुस्लिमों की निजी संपत्तियों पर सरकार का ‘टेकओवर’ है. उन्होंने कहा कि कानून की कई धाराएं विशेषकर धारा 3(आर), 3(ए)(2), 3(सी), 3(ई), 9, 14 और 36 असंवैधानिक हैं. इससे मुसलमानों को धार्मिक, सामाजिक और संपत्ति से जुड़े अधिकारों से वंचित करने की कोशिश है.
क्या बोली अदालत?
सीजेआई संजीव खन्ना ने स्पष्ट करते हुए कहा कि सभी याचिकाकर्ताओं को सुनना संभव नहीं है. ऐसे में चयनित वकील ही बहस करेंगे. इसमें कोई भी तर्क दोहराया नहीं जाएगा. सुनवाई के वक्त अदालत ने अनुच्छेद 26 की सेक्युलर प्रकृति को रेखांकित किया. उसने कहा कि यह सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होता है. वहीं, जस्टिस विश्वनाथन ने तय किया कि संपत्ति धर्मनिरपेक्ष हो सकती है. उसका प्रशासन ही धार्मिक हो सकता है.
सीजेआई के अनुसार, 'हम ये नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और फैसला देने में सुप्रीम कोर्ट में किसी तरह की रोक है. जस्टिस खन्ना के अनुसार, 'हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर विचार करने के लिए कहना चाहते हैं. पहला- क्या इस पर विचार करना चाहिए या इसे हाईकोर्ट को सौंपना चाहिए? दूसरा-संक्षित में बताएं कि वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देने हैं. दूसरा ये कि हमें पहले मुद्दे पर फैसला लेने में कुछ हद तक मदद करनी चाहिए.
सीजेआई ने कहा कि जो भी संपत्ति वक्फ घोषित की गई है, जो भी संपत्ति उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ घोषित की गई है, या न्यायालय द्वारा घोषित की गई है, उसे गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा. कलेक्टर कार्यवाही जारी रख सकते हैं. लेकिन प्रावधान लागू नहीं होगा. पदेन सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं. उन्हें धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है लेकिन अन्य मुस्लिम होने चाहिए.
क्या है केंद्र का पक्ष
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि वक्फ कानून का लक्ष्य केवल संपत्ति का नियमन है, न कि धार्मिक हस्तक्षेप. उन्होंने कहा कि सरकार ट्रस्टी के रूप में कार्य कर सकती है और कलेक्टर को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। इस तरह से संपत्ति विवादों का जल्द निर्णय हो सकेगा।
मेहता के अनुसार, 1995 से लेकर 2013 तक वक्फ बोर्ड के सदस्यों का नामांकन केंद्र सरकार की करती रही है।