इथियोपिया में फटा ज्वालामुखी..., तो फिर भारत में कैसे पहुंची उसकी राख?

इथियोपिया में एक प्राचीन ज्वालामुखी फटा गया, जिसका असर दुनिया के कई देशों में देखने को मिल रहा है. इसमें भारत भी शामिल है. ज्वालामुखी के फटने के बाद उसकी राख देश की राजधानी तक पहुंच गई है.

इथियोपिया में एक प्राचीन ज्वालामुखी फटा गया, जिसका असर दुनिया के कई देशों में देखने को मिल रहा है. इसमें भारत भी शामिल है. ज्वालामुखी के फटने के बाद उसकी राख देश की राजधानी तक पहुंच गई है.

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Ravi Prashant
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Ethiopia volcanoes

इथियोपिया ज्वालामुखी विस्फोट (AI IMAGE) Photograph: (Freepik)

अफ्रीका में अचानक एक प्राचीन ज्वालामुखी एक्टिव हो गया है और उसकी राख सीधे दुनिया के कई देश समेत भारत की तरफ आ गई है. यह सिर्फ मौसम नहीं, हवाई यातायात की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक बन गया है, जिसके बाद कई सारे एयरलाइंस ने अपने फ्लाइट्स को डिले कर दिया है. आखिर ये कैसे हुआ और इसकी राख भारत तक कैसे पहुंची.   

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कैसे शुरू हुई यह घटना?

अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में स्थित एथियोपिया के अफार क्षेत्र में रविवार को Hayli Gubbi नामक ज्वालामुखी में अचानक विस्फोट हुआ. विशेष बात यह है कि वैज्ञानिक इसे हजारों वर्षों से निष्क्रिय मानते रहे थे. इसलिए अचानक हुए इस विस्फोट ने न सिर्फ अफ्रीका, बल्कि पूरे वैश्विक मौसम तंत्र को प्रभावित करने की शुरुआत कर दी. विस्फोट के बाद राख और धुएं का ऐसा गुबार उठा, जिसने लगभग 14–16 किलोमीटर की ऊंचाई तक आसमान को ढक दिया. राख का यही बादल अब हवा की दिशा बदलने के कारण अरब सागर के रास्ते भारत की ओर बढ़ रहा है. 

राख भारत तक कैसे पहुंची?

हवा की दिशा और समुद्री दाब ने इस राख-बादल को पूर्व की ओर धकेल. पहले यह सोमालिया और अरब सागर के ऊपर फैला, फिर पश्चिम भारत की दिशा पकड़ ली. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार यह बादल 15,000–45,000 फीट की ऊंचाई पर तैर रहा है. यही वजह है कि यह हवा के रुख के साथ लंबी दूरी तय करते हुए भारतीय सीमाओं के पास पहुंच गया है. शुरुआती असर गुजरात के आसमान में दिखाई पड़ा, इसके बाद यह राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा व पंजाब की तरफ धीरे-धीरे बढ़ गया. 

हवाई सेवाओं के लिए खतरा क्यों?

विमानों के इंजन विशेष ताप पर चलते हैं. राख के महीन कण इंजन में पहुंच जाएं तो वे कांच जैसे कठोर पदार्थ में बदल जाते हैं, जिससे इंजन फेल होने की संभावना बढ़ जाती है. यही कारण है कि कई अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों में राख से प्रभावित क्षेत्रों में विमानों को उतरते ही इंजन बदलने पड़े. राख के कारण दिखाई भी देने लगती है और नेविगेशन सिस्टम के डिवाइस प्रभावित हो सकते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय नागरिक उड्डयन विभाग और एयरलाइनों ने यात्रियों को सचेत किया है कि कुछ उड़ानों का रूट बदला जा सकता है और देरी भी हो सकती है. 

क्या लोगों की सेहत पर असर पड़ेगा?

फिलहाल राख-बादल जमीन से काफी ऊंचाई पर है, इसलिए आम लोगों तक इसका सीधा प्रभाव नहीं पहुंचेगा. लेकिन अगर हवा बदलने या बारिश जैसी परिस्थितियों में राख नीचे आ गई, तो वायु गुणवत्ता में हल्की गिरावट, आंखों और सांस से संबंधित समस्याएं बढ़ सकती हैं. इस स्थिति में संवेदनशील लोगों जैसे अस्थमा या फेफड़ों की बीमारी के मरीजों को खासतौर पर सतर्क रहने की सलाह दी जा सकती है.

क्या स्थिति काबू में है?

अभी तक स्थिति चिंता का विषय है, खतरे की नहीं. मौसम विभाग लगातार राख की दिशा पर नजर रख रहा है और एयरलाइंस भी सावधानी से उड़ान मार्ग तय कर रही हैं. चूंकि यह ज्वालामुखी अभी भी पूरी तरह शांत नहीं हुआ है, इसलिए आने वाले दिनों में उसके प्रभाव में बदलाव हो सकता है. इसलिए फिलहाल निगरानी ही सबसे बड़ा उपाय है. 

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