Vande Mataram Controversy: आजाद भारत में भी क्यों होता है ‘वंदे मातरम्’ गीत का विरोध?

‘वंदे मातरम्’ गीत 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की रचना है, जिसने आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों में जोश भरा. बता दें कि बंगाल विभाजन के दौरान इसका विरोध शुरू हुआ, लेकिन आज भी यह देशभक्ति का प्रतीक है.

‘वंदे मातरम्’ गीत 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की रचना है, जिसने आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों में जोश भरा. बता दें कि बंगाल विभाजन के दौरान इसका विरोध शुरू हुआ, लेकिन आज भी यह देशभक्ति का प्रतीक है.

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Deepak Kumar
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Photograph: (Freepik)

Vande Mataram Controversy: ‘वंदे मातरम्’ देशभक्ति और आजादी के संघर्ष का प्रतीक गीत है, जिसकी रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी. स्वतंत्रता आंदोलन में यह क्रांतिकारियों का नारा बना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ माहौल तैयार किया. लेकिन आजाद भारत में इस गीत पर विवाद मुख्य रूप से धार्मिक व्याख्या और सांप्रदायिक राजनीति के कारण बना हुआ है. कुछ मुस्लिम संगठनों का तर्क है कि गीत में भारतमाता को देवी का रूप देकर पूजा का भाव व्यक्त किया गया है, जो इस्लामिक मान्यताओं से मेल नहीं खाता. इसी असहमति के चलते समय-समय पर विरोध और राजनीतिक बहसें उठती रही हैं.

बता दें कि 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाल के कांटलपाड़ा गांव में ‘वंदे मातरम्’ गीत की रचना की थी. इसके बाद 7 नवंबर 1875 को प्रकाशित उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इसे स्थान मिला. इस गीत में मां भारती को देवी स्वरूप में चित्रित किया गया है. 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया, जिसके बाद यह स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य गीत बन गया.

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वंदे मातरम् पर विवाद की शुरुआत क्यों हुई?

पूर्व सूचना आयुक्त सैयद हैदर अब्बास रिजवी के मुताबिक इस गीत का विरोध बंगाल के बंटवारे के दौरान शुरू हुआ. 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, जिससे हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव और दंगे होने लगे. अंग्रेजों ने दो समुदायों को अलग-अलग खड़ा कर दिया, और यहीं से कुछ मुस्लिम संगठनों ने इस गीत का विरोध शुरू किया. विरोधियों का तर्क था कि गीत में मां के रूप में देवी की पूजा की भावना व्यक्त की गई है, जो इस्लामिक विचारों से मेल नहीं खाती.

1909 में आए मॉर्ले-मिंटो सुधार ने भी सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा दिया. हालांकि 1911 में जनता के दबाव में बंगाल विभाजन वापस लेना पड़ा. बाद में, संविधान सभा में नेहरू के ऐतिहासिक भाषण ‘Tryst with Destiny’ के बाद, क्रांतिकारी नेता शुचेता कृपलानी ने ‘वंदे मातरम्’ गाया था. इसके बाद सभा ने ‘जन गण मन’ भी सामूहिक रूप से गाया.

धर्म से ऊपर राष्ट्रभक्ति

रिजवी ने कहा कि ‘राष्ट्रीय गीत किसी पर थोपा नहीं जा सकता’. वे कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय ‘सारे जहाँ से अच्छा’ पूरे दिल से गाता है और देश से उतनी ही मोहब्बत करता है जितनी कोई और. उन्होंने कहा यदि कोई चाहे तो इसे ‘बंदे ईश्वरम’ भी कह सकता है, क्योंकि भाव मूल रूप से देशप्रेम का है.

‘वंदे मातरम्’ आज भी देशभक्ति की मजबूत आवाज है. विवादों के बावजूद यह गीत आज भी लोगों के दिलों में स्थान रखता है और भारत की एकता और आजादी की याद दिलाता है.

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