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UP connection of Iran's Ayatollah Khomeini's grandfather 'Ahmad Hindi' Photograph: (Social Media)
इन दिनों जब इज़राइल और ईरान के बीच तनाव अपने चरम पर है, मिसाइलें दागी जा रही हैं और जंग की आहटें तेज़ हैं, ऐसे समय में एक ऐतिहासिक और दिलचस्प कड़ी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से जुड़ती नज़र आती है. बहुत कम लोग जानते होंगे कि ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला अली खुमैनी का पैतृक रिश्ता बाराबंकी के किंतूर गांव से है. दरअसल, खुमैनी के दादा सैयद अहमद मुसावी का जन्म उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में बाराबंकी के पास किंतूर गांव में हुआ था. उन्होंने बाद में भारत को अलविदा कहा और ईरान की ओर रुख किया. यात्रा के दौरान वे इराक के नजफ गए और अंततः 1834 के आसपास ईरान के खोमेन शहर में बस गए. वहीं से उनके परिवार की कहानी ईरान की राजनीति और क्रांति तक पहुंची.
भारत आए थे और फिर बाराबंकी में बसे
अहमद मुसावी हिंदी के पिता दीन अली शाह मिडिल ईस्ट से भारत आए थे और फिर बाराबंकी में बसे. अहमद मुसावी ने अपने नाम के साथ 'हिंदी' जोड़कर भारत से अपने जुड़ाव को हमेशा जिंदा रखा. उन्हें इस्लामी पुनरुत्थान का समर्थक माना जाता है. 1869 में उनका निधन हुआ और उन्हें कर्बला में दफनाया गया.
अयातुल्ला खुमैनी ने किया 1979 में ईरानी इस्लामी क्रांति का नेतृत्व
उनके पोते अयातुल्ला खुमैनी ने आगे चलकर 1979 में ईरानी इस्लामी क्रांति का नेतृत्व किया और ईरान को एक धर्मतंत्र में बदल दिया. वे देश के पहले सर्वोच्च नेता बने और आज भी ईरानी सत्ता की नींव उन्हीं के विचारों पर टिकी है. इस बीच किंतूर गांव में रहने वाले खुमैनी के खानदानी सैय्यद निहाल अहमद काजमी मौजूदा युद्ध को गलत ठहरा रहे हैं. उन्होंने कहा कि "जंग नहीं होनी चाहिए, इसमें मासूम लोग मारे जा रहे हैं. किसी भी हाल में शांति और संवाद ही एकमात्र रास्ता होना चाहिए. यह इतिहास का एक दुर्लभ अध्याय है, जहां एक छोटे से गांव से निकला व्यक्ति दनिया की सबसे चर्चित क्रांतियों में से एक की नींव रखने वाले परिवार का हिस्सा बना. यह दिखाता है कि कैसे इतिहास और विरासत, भूगोल की सीमाओं से परे जाकर एक वैश्विक कहानी रचते हैं.