Trump Tariff
भारत को अब आलसी निर्यातक बने रहने की आदत छोड़नी होगी. उत्पाद और बाजार दोनों का दायरा बढ़ाना होगा. विदेशी निवेश के नियम आसान करने होंगे और छोटे समय में निर्यातकों को प्रोत्साहन देना होगा.
पहले भारत का विदेशी व्यापार खासकर आयात को लेकर नजरिया बहुत तंग था. गुटनिरपेक्ष आंदोलन और बाकी सहयोग की बातें होने के बावजूद हम दूसरे देशों के साथ व्यापार और विदेशी निवेश में काफी सावधान रहते थे. हमने चार दशक तक अपने दरवाजे बंद रखे और आयात निर्यात के लिए सख्त नियम बनाए. हर चीज के लिए लाइसेंस परमिट चाहिए होता था. ज्यादातर आयात और कुछ निर्यात सरकारी निगमों से ही होते थे. इसके लिए एक मुख्य नियंत्रक और उसकी टीम होती थी, जिनका बस यही काम था कि कौन आयात निर्यात कर सकता है और कौन नहीं. यह पूरा सिस्टम फायदे का धंधा बन गया था. लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा कि आयात नियंत्रक तो ठीक पर निर्यात नियंत्रक क्यों?
1990-91 में एलपीजी सुधार बाद खुली अर्थव्यवस्था
नतीजा यह हुआ कि ना तो निर्यात बढ़ा, ना निर्यात उन्मुख उद्योग बने और ना ही विदेशी मुद्रा भंडार में कोई खास इजाफा हुआ. जबकि हमारे जैसे कई देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था खोली, मुक्त व्यापार अपनाया और अमीर हो गए. फिर 1990-91 में जब भारत आर्थिक संकट में फंस गया तो मजबूरी में सुधार करने पड़े. गैर शुल्क बाधाएं हटाई. जीएटीटी पर हस्ताक्षर किए. डब्ल्यूटीओ में शामिल हुए और मुफ्त व्यापार समझौते किए. लोगों ने धीरे-धीरे खुली अर्थव्यवस्था को अपना लिया. लेकिन मजे की बात यह है कि जब विकासशील देश खुले तो पहले से खुले देश संरक्षणवादी बनने लगे और इसमें सबसे आगे थे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप. उन्होंने ऊंचे शुल्क गैर शुल्क रोक आयात को हतोत्साहित करने और अमेरिकी कंपनियों को बाहर फैक्ट्री लगाने से डराने जैसी नीतियां बनाई.
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अर्थशास्त्र की बुनियादी सच्चाइयों को नजरअंदाज किया
उनका मानना था कि इससे अमेरिका को मनचाहे नतीजे मिलेंगे. लेकिन उन्होंने अर्थशास्त्र की बुनियादी सच्चाइयों को नजरअंदाज किया. उन्होंने देशों को टैरिफ के जरिए दबाया. जो झुके उन्हें इनाम जैसे ऑस्ट्रेलिया और जापान उन्हें सजा जैसे कनाडा, ब्रिटेन. भारत को भी स्टील, एलुमिनियम, तांबे और रूसी तेल पर भारी शुल्क का सामना करना पड़ा. अब भारत के पास ना झुकने का विकल्प है ना जरूरत. बस साफ कह देना है कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं. लेकिन अपने हितों पर अडिग रहेंगे. असल में ट्रंप की नीति से अमेरिका में कीमतें बढ़ेंगी, महंगाई चढ़ेगी, नौकरियां नहीं बढ़ेंगी और उनके विकास दर धीमी होगी. जिससे शायद 2026 के चुनाव में उन्हें झटका लगे.
भारत को अब आलसी निर्यातक बने रहने की आदत छोड़नी होगी
वहीं, भारत को अब आलसी निर्यातक बने रहने की आदत छोड़नी होगी. उत्पाद और बाजार दोनों का दायरा बढ़ाना होगा. विदेशी निवेश के नियम आसान करने होंगे और छोटे समय में निर्यातकों को प्रोत्साहन देना होगा. भले ही इसके लिए विनिमय दर में बदलाव करना पड़े या गैर जरूरी आयात पर रोक लगानी पड़े. विदेश नीति का सीधा सबक है. अगर आप झुकेंगे तो आपको गिरा दिया जाएगा. पीएम मोदी ने शायद ट्रंप के साथ दोस्ती में यह बात भूल गए थे. लेकिन अब वक्त है कि अमेरिका को साफ संदेश दिया जाए. हम अपने हितों की रक्षा करेंगे. निष्पक्ष व्यापार के लिए दरवाजे खुले रहेंगे और बातचीत व समझौते के लिए तैयार हैं. चाहे रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों ना हो.
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