तालिबान की ‘धार्मिक डिप्लोमेसी’: मुत्ताकी देवबंद में, अफ़ग़ानिस्तान अपनी नई पहचान गढ़ने की ओर

अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार, जिसे तालिबान 2.0 कहा जा रहा है, अब अपनी छवि को चरमपंथी अतीत से अलग रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही है. इसी दिशा में कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की दारुल उलूम देवबंद यात्रा अत्यंत प्रतीकात्मक और सकारात्मक मानी जा रही है.

अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार, जिसे तालिबान 2.0 कहा जा रहा है, अब अपनी छवि को चरमपंथी अतीत से अलग रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही है. इसी दिशा में कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की दारुल उलूम देवबंद यात्रा अत्यंत प्रतीकात्मक और सकारात्मक मानी जा रही है.

author-image
Madhurendra Kumar
New Update
Amir Muttaki in Devbandh

अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार, जिसे तालिबान 2.0 कहा जा रहा है, अब अपनी छवि को चरमपंथी अतीत से अलग रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही है. इसी दिशा में कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की दारुल उलूम देवबंद यात्रा अत्यंत प्रतीकात्मक और सकारात्मक मानी जा रही है. यह कदम तालिबान के उस प्रयास का हिस्सा है जिसमें वह वैचारिक और धार्मिक स्तर पर अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करना चाहता है , ऐसी पहचान जो पाकिस्तान के प्रभाव, ISIS , अल कायदा, हक्कानी और जिहादी नेटवर्क से अलग हो.

Advertisment

देवबंद से जुड़ाव: धार्मिक कूटनीति का नया अध्याय

देवबंद की स्थापना 19वीं सदी में इस्लामी शिक्षा, आत्म-सुधार और सामाजिक जिम्मेदारी के सिद्धांतों पर हुई थी. तालिबान, जो लंबे समय तक पाकिस्तानी हक्कानिया नेटवर्क और वहाबी प्रवृत्तियों से प्रभावित रहा है, अब भारत के इस ऐतिहासिक देवबंदी स्रोत से जुड़कर अपनी धार्मिक वैधता को पुनर्परिभाषित करना चाहता है.

मुत्ताकी की यह यात्रा केवल आध्यात्मिक यात्रा या फिर आध्यात्मिक जागरण नहीं बल्कि एक सुनियोजित धार्मिक कूटनीति के नजरिए से भी देखा जाना चाहिए. इसके माध्यम से तालिबान यह दर्शाना चाहता है कि वह पाकिस्तान के धार्मिक प्रभाव से मुक्त होकर स्वदेशी और आत्मनिर्भर इस्लामी पहचान की ओर बढ़ रहा है.

पाकिस्तानी प्रभाव से अलग वैचारिक स्वतंत्रता की चाह

कई वर्षों से तालिबान की धार्मिक जड़ें पाकिस्तान के हक्कानिया मदरसे से जुड़ी रही हैं, जिसने उसके नेताओं को जिहादी विचारधारा की ओर प्रेरित किया. लेकिन अब तालिबान का झुकाव देवबंद की ओर यह दिखाता है कि वह चरमपंथी छवि से निकलकर एक शिक्षित, संयमित और पारंपरिक धार्मिक संस्था के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है. समय समय पर ISI ने हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल कर तालिबान के जरिए भारत को आघात पहुंचाने की कोशिशें की लेकिन पर्दे के पीछे से उनका खेल लंबे समय तक चल नहीं पाया.

देवबंद बनाम ISIS और अल-कायदा: विचारधाराओं की स्पष्ट रेखा

देवबंदी विचारधारा का मूल उद्देश्य इस्लाम की शिक्षा, नैतिकता और आध्यात्मिक सुधार पर केंद्रित है. यह हिंसा या वैश्विक जिहाद की अवधारणा को स्वीकार नहीं करती. इसके विपरीत, ISIS और अल-कायदा जैसी सलाफ़ी-वहाबी धाराएं इस्लाम की कट्टर व्याख्या पर आधारित हैं, जो धार्मिक मतभेदों को हिंसक संघर्ष का औजार बनाती हैं.

देवबंद की परंपरा शिक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी पर ज़ोर देती है, जबकि ISIS और अल-कायदा राज्य-विहीन आतंक और सत्ता हथियाने की राजनीति को बढ़ावा देते हैं. यही कारण है कि तालिबान, जो लंबे समय तक वैश्विक जिहादी नेटवर्क से जुड़ा माना जाता रहा, अब देवबंद की छवि के माध्यम से खुद को एक स्थानीय और परंपरागत धार्मिक सत्ता के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है , न कि एक ट्रांसनेशनल जिहादी आंदोलन के रूप में.

इस यात्रा के जरिए तालिबान का संदेश साफ है की वह इस्लामिक अवधारणा के मुताबिक अपनी शासन पद्धति को अफगानिस्तान के दायरे में सीमित रखना चाहता है न की ISIS की तरह आतंकी हथकंडों और जेहाद के जरिए दुनिया भर में फैलना.

भारत के लिए नया अवसर: धार्मिक कूटनीति के ज़रिए संवाद

भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंध पारंपरिक रूप से विकास और मानवीय सहायता पर आधारित रहे हैं. लेकिन तालिबान की यह पहल भारत को एक नए आयाम, धार्मिक संवाद में प्रवेश का अवसर देती है.

भारत देवबंदी परंपरा का जन्मस्थान है. यदि नई दिल्ली इस विचारधारा के मूल सिद्धांत जैसे की शिक्षा, संयम और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व  को पुनर्जीवित करती है, तो वह अफ़ग़ान धार्मिक ढांचे को भी संतुलन और सहिष्णुता की दिशा में प्रभावित कर सकती है. इसके लिए किसी राजनीतिक मान्यता की आवश्यकता नहीं, बल्कि शैक्षणिक और सांस्कृतिक सहयोग पर्याप्त होगा. भारत और तालिबान का ज्वाइंट डिक्लेरेशन देखें तो मानवीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास और मानवीय संसाधनों के समुचित इस्तेमाल पर दोनों तरफ से जोर दिया गया है.  

भारत तालिबान और डी फॉर का कांसेप्ट

अफ़ग़ानिस्तान से भारत के दीर्घकालिक संबंधों के लिए "डी फोर*  यह रणनीति जिसमें  डिप्लोमेसी, डेवलपमेंट , डायलॉग के साथ देवबंद का समुचित स्थान दिखाई देता है, दोनों देशों के रिश्ते में एक नई रोशनी डालता है. इसके जरिए दोनों देशों के संबंधों में एक समग्र नीति बन सकती है. भारत के देवबंदी विद्वान इस्लामी शिक्षाओं में हिंसा के अस्वीकार और नैतिक अनुशासन की व्याख्या को मज़बूत कर पाकिस्तान द्वारा फैलाए गए ‘मिलिटेंट देवबंदिज्म’ के नैरेटिव को भी कमजोर कर सकते हैं.

देवबंद बनाम हक्कानिया: विचारधाराओं की जड़ें और भविष्य की दिशा

हक्कानिया मदरसे ने जहां तालिबान को धार्मिक आधार तो दिया, लेकिन इससे उसकी छवि राज्य-प्रायोजित जिहादी तंत्र के रूप में बनी. देवबंद इसके विपरीत शिक्षा, सुधार और राष्ट्र के साथ सह-अस्तित्व पर ज़ोर देता है. तालिबान अब इन दोनों के बीच अपनी वैचारिक दिशा तय कर रहा है जो एक शुभ संकेत है. एक ऐसी राह जो विचारधारा के माध्यम से राजनीतिक वैधता प्रदान कर सके.

अमीर खान मुत्ताकी की यह देवबंद यात्रा, तालिबान के भीतर चल रहे नव जागरण का परिचायक कहा जा सकता है. यह केवल धार्मिक संवाद नहीं, बल्कि पहचान और वैचारिक दिशा की पुनर्परिभाषा है जिसमें तालिबान यह संदेश देना चाहता है कि वह अब न तो अल-कायदा का सहयोगी है, न ही ISIS जैसी सलाफ़ी ताकतों का अनुयायी, बल्कि दक्षिण एशिया की परंपरागत देवबंदी विचारधारा का प्रतिनिधि बनना चाहता है और एक स्वतंत्र राजनीतिक धार्मिक पहचान के साथ दुनिया में अपने संबंधों को साधना चाहता है जो पाकिस्तान और अमेरिका के छाया से उन्मुक्त और स्वछंद हो. 

India-Afghanistan relation india afghanistan relations India-Afghanistan
Advertisment