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सुरेंद्र कोली Photograph: (NN)
देश को झकझोर देने वाले निठारी कांड में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. अदालत ने 2006 के बहुचर्चित निठारी सीरियल किलिंग केस में दोषी ठहराए गए सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि जांच में कई गंभीर खामियां थीं और कानून के मुताबिक केवल शक या अधूरे सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने कोली की सजा और दोषसिद्धि रद्द करते हुए उसकी तुरंत रिहाई का आदेश दिया, बशर्ते वह किसी और केस में वांछित न हो.
तीनों जजों ने जताया दुख
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि यह गहरी पीड़ा की बात है कि लंबे समय की जांच के बावजूद असली अपराधी की पहचान स्थापित नहीं हो सकी. अदालत ने कहा, “जुर्म बहुत ही जघन्य था, और पीड़ित परिवारों का दर्द असीम है, लेकिन अपराध सिद्ध करने के लिए ठोस सबूत जरूरी हैं.”
निठारी कांड क्या था?
2005 और 2006 के बीच नोएडा के निठारी गांव में बच्चों और युवतियों के लापता होने की कई घटनाएं सामने आईं. 29 दिसंबर 2006 को निठारी स्थित कारोबारी मोनिंदर सिंह पंधेर के घर के पीछे नाले से आठ बच्चों के कंकाल और अवशेष बरामद हुए, जिससे पूरा देश सन्न रह गया. इस केस में पंधेर का घरेलू नौकर सुरेंद्र कोली मुख्य आरोपी बना.
सीबीआई जांच किया था खुलासा
सीबीआई की जांच में कोली ने कथित तौर पर कबूल किया था कि वह बच्चों और महिलाओं को पंधेर के घर लाता था और पंधेर यौन शोषण के बाद उनकी हत्या करता था. एजेंसी ने दावा किया था कि पंधेर न सिर्फ रेप और हत्या करता था बल्कि मानव मांस खाने की प्रवृत्ति भी रखता था. इस भयावह खुलासे ने पूरे देश में गुस्से की लहर पैदा कर दी थी.
लंबी कानूनी लड़ाई चली
2007 में सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली. 2009 से 2012 के बीच कोली को अलग-अलग मामलों में कई बार फांसी की सजा सुनाई गई. फरवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक केस में उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी थी. हालांकि, 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसकी फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया, क्योंकि दया याचिका पर निर्णय में काफी देरी हुई थी. पंधेर और कोली के खिलाफ कुल 19 केस दर्ज हुए, जिनमें 16 मुकदमों की सुनवाई हुई. पंधेर को छह मामलों में आरोपी बनाया गया और तीन में दोषी ठहराया गया था. 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों को कई मामलों में बरी कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला
11 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कोली की क्यूरेटिव पिटीशन (अंतिम पुनर्विचार याचिका) स्वीकार करते हुए कहा कि उसकी दोषसिद्धि “कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं” है. अदालत ने कई प्रमुख कारण बताए. अदालत ने कहा कि अपराध स्थल को ठीक से सील नहीं किया गया था. खुदाई शुरू होने से पहले जांच प्रक्रिया का कोई सही रिकॉर्ड नहीं रखा गया और कोली को लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखा गया, बिना किसी स्वतंत्र मेडिकल जांच के. कोली का कबूलनामा 60 दिन की पुलिस हिरासत के बाद लिया गया था. न तो उसे वकील की मदद मिली और न ही मजिस्ट्रेट ने यह सुनिश्चित किया कि बयान स्वेच्छा से दिया गया है. अदालत ने इसे कानूनी रूप से दूषित बताया.
कोर्ट ने एक-एक बताई वजह
जिन चाकुओं और कुल्हाड़ियों को सबूत के रूप में पेश किया गया, उन पर खून, ऊतक या बालों के निशान नहीं मिले. किसी विशेषज्ञ ने यह भी प्रमाणित नहीं किया कि एक घरेलू नौकर बिना मेडिकल जानकारी के इतनी सटीक तरीके से शवों के टुकड़े कर सकता था. कोर्ट ने कहा कि कई तथ्यों को पहले से ज्ञात स्थानों से बरामद बताया गया, जिससे डिस्कवरी का कानूनी आधार ही खत्म हो जाता है. जब सबूतों की यह कड़ी हटाई जाती है, तो पूरा आरोपित ढांचा गिर जाता है.
अदालत ने कहा कि जिन वजहों से कोली 12 अन्य मामलों में बरी हुआ था, वही कमजोरियां इस केस में भी मौजूद थीं. इसलिए अलग निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.
अदालत की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “क्रिमिनल लॉ किसी को केवल शक या अनुमान पर सजा देने की अनुमति नहीं देता. सबूतों की सीरीज पूरी तरह स्पष्ट और ठोस होनी चाहिए, जो यहां नहीं थी.” अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालतों ने सबूतों का मूल्यांकन सही तरीके से नहीं किया और जांच एजेंसियों की चूक ने न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित किया.
अब आगे क्या?
इस फैसले के बाद सुरेंद्र कोली लगभग 19 साल बाद जेल से बाहर आएगा. वहीं, निठारी कांड से प्रभावित परिवार अब भी यही सवाल पूछ रहे हैं. “अगर पंधेर और कोली दोषी नहीं, तो हमारे बच्चों की हत्या किसने की?” सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल एक पुराने और भयावह मामले का अंत है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि न्याय केवल सजा देना नहीं, बल्कि सही व्यक्ति को सजा देना है और जब तक वह साबित न हो, कानून किसी निर्दोष को दोषी नहीं ठहरा सकता.
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