'कम्युनिटी' से बाहर शादी, नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा; सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Supreme Court: अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि केस में वसीयत करने वाले व्यक्ति की इच्छा को प्राथमिकता दी जाएगी.यह कोर्ट उसकी वसीयत को नहीं बदल सकती और न उसको रद्द कर सकती है.

Supreme Court: अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि केस में वसीयत करने वाले व्यक्ति की इच्छा को प्राथमिकता दी जाएगी.यह कोर्ट उसकी वसीयत को नहीं बदल सकती और न उसको रद्द कर सकती है.

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Amit Kasana
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सुप्रीम कोर्ट का प्रतिकात्मक फोटो

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Supreme Court Upholds Will Disinheriting Daughter: समुदाय से बाहर शादी करने पर बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा.सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा फैसला दिया है.दरअसल, इस केस में पिता ने पहले ही अपनी वसीयत में बेटी को बेदखल कर दिया था.ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने पिता की इस वसीयत को वैध ठहराते हुए अपना फैसला दिया है.मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के.विनोद चंद्रन की बेंच ने हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें वसीयत पर संदेह जताते हुए सभी नौ बच्चों के बीच संपत्ति का बराबर बंटवारा करने की बात कही गई थी.

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अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि समुदाय से बाहर शादी करने पर बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा.बता दें इस मामले में एन.एस श्रीधरन नाम के व्यक्ति ने अपनी 9 संतानों में से एक बेटी शैला जोसेफ को अपनी संपत्ति से वंचित कर दिया था, क्योंकि उसने समुदाय से बाहर शादी कर ली थी.जिसके बाद निचली अदालत और हाई कोर्ट ने बेदखल बेटी के पक्ष में फैसला दिया, इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 

समानता के न्याय के आधार पर केस में निर्णय नहीं दे सकते

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि वसीयत पूरी तरह साबित हो चुकी है और इसमें हम किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं.कोर्ट ने अपने ऑर्डर में स्पष्ट कहा कि संपत्ति के मालिक की अंतिम इच्छा सबसे ऊपर होती है और इस केस में समानता का सिद्धांत लागू नहीं होता है.अपने फैसले में कोर्ट ने आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि हम समानता के न्याय के आधार पर इस केस में निर्णय नहीं दे सकते।

पिता की संपत्ति में मिलना चाहिए हिस्सा 

कोर्ट ने कहा कि केस में वसीयत करने वाले व्यक्ति की इच्छा को प्राथमिकता दी जाएगी.यह कोर्ट उसकी वसीयत को नहीं बदल सकती और न उसको रद्द कर सकती है.वहीं, कोर्ट में शैला जोसेफ की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता पी बी कृष्णन ने दलील दी कि उनकी मुवक्किल को कम से कम अपने पिता की संपत्ति में नौवां हिस्सा तो मिलना चाहिए, जो संपत्ति का बहुत छोटा भाग है.लेकिन अदालत ने इस अनुरोध को भी खारिज कर दिया.

पिता ने अपने एक बच्चे को अपनी संपत्ति से बाहर किया था

कोर्ट ने शैला का 9वां हिस्सा देने के आग्रह को खारिज करते हुए कहा कि यदि सभी बच्चों को वसीयत से वंचित किया जाता तब इस केस में समानता के नियम को लागू किया जा  सकता था.अदालत ने आगे कहा कि इस केस में पिता ने अपने एक बच्चे को अपनी संपत्ति से बाहर किया है और इसके लिए वसीयत में स्पष्ट कारण भी बताया गया है।

अदालत किसी पर अपनी सोच नहीं थोप सकती है

अदालत ने आगे कहा कि वसीयत में दिए गए कारण पर कोर्ट अपनी राय नहीं थोप सकता है.कोर्ट वसीयतकर्ता की जगह खुद को नहीं रख सकता है और  न कि अपनी सोच को उस पर थोप सकता है.व्यक्ति को अपनी संपत्ति बांटने का पूर्ण अधिकार है और अदालत उसमें दखल नहीं दे सकती.बता दें पेश मामले में शैला जोसेफ ने अपने पिता की संपत्ति पर दावा किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.

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