Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए अपनी दो मासूम बेटियों की हत्या के लिए दोषी ठहराई गई एक महिला की सजा को कम कर दिया. अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत उसकी दोषसिद्धि को बदलकर गैर इरादतन हत्या (धारा 304 भाग II आईपीसी) में बदल दिया है. इस फैसले के बाद, महिला, जिसने पहले ही लगभग 10 साल जेल में बिता दिए हैं, अब रिहा हो सकेगी.
क्या था मामला?
दरअसल, इस महिला को अपनी 3 और 5 साल की दो छोटी बेटियों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. निचली अदालत और उच्च न्यायालय दोनों ने उसे हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
मां का अजीबोगरीब दावा
अपील के दौरान, महिला ने अदालत में एक चौंकाने वाला दावा किया. उसने कहा कि उसने अपनी बेटियों की हत्या "अदृश्य प्रभाव" के तहत की थी. हालांकि, निचली अदालतों ने इस दलील को खारिज कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने मामले की परिस्थितियों पर गहराई से विचार किया. कोर्ट ने माना कि यह साबित हो चुका है कि महिला ने ही अपनी बेटियों पर हमला किया था, जिससे उनकी मौत हुई. हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि सिर्फ इसलिए कि महिला अपनी स्थिति को कानूनी भाषा में ठीक से व्यक्त नहीं कर पाई, उसकी बात को पूरी तरह से अनदेखा नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सिज़ोफ्रेनिया या द्विध्रुवी विकार जैसे विभिन्न मानसिक विकारों के बारे में जानकारी होना आम बात नहीं है. ये बीमारियां किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को अस्थायी रूप से खराब कर सकती हैं, जिससे वे सोच-समझकर निर्णय लेने में असमर्थ हो सकते हैं.
सजा में बदलाव और रिहाई का आदेश
अदालत ने इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह अनुमान लगाया कि संभवतः महिला किसी प्रकार की खराब मानसिक स्थिति से गुजर रही थी, भले ही यह कानूनी रूप से पूर्ण बचाव (धारा 84 आईपीसी) के तौर पर मान्य न हो. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उसकी हत्या की सजा को गैर इरादतन हत्या (धारा 304 भाग II) में बदल दिया. बता दें कि धारा 304 भाग II के तहत अधिकतम सजा 10 साल है और महिला पहले ही 9 साल 10 महीने जेल में बिता चुकी है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिहाई का आदेश दे दिया.