SC on Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गैंगरेप के एक मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. जिसमें शीर्ष कोर्ट ने एक व्यक्ति के रेप का दोषी पाए जाने पर सभी आरोपियों को दोषी मानने की बात कही. इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, यदि साझा इरादा सिद्ध हो जाता है, तो सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा किए गए दुष्कर्म के मामले में भी इसमें शामिल सभी व्यक्तियों को गैंगरेप के लिए दोषी ठहराया जा सकता है. इस मामले में न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने फैसला सुनाया.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'यह स्पष्ट है कि आईपीसी की धारा 376(2)(g) के तहत सामूहिक दुष्कर्म के मामले में यदि सभी आरोपियों की साझा मंशा के तहत कृत्य होता है तब भी एक आरोपी द्वारा किया गया कृत्य सभी को दंडित करने के लिए पर्याप्त है." इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि इस धारा के तहत, अगर एक से अधिक व्यक्ति इस साझा इरादे के साथ इस अपराध में शामिल हुए तो यह साबित करने की जरूरत नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति ने दुष्कर्म किया हो.
शीर्ष अदालत ने कहा कि केवल एक व्यक्ति द्वारा किया गया ये कृत्य ही सभी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है. हालांकि एससी ने ये भी कहा कि मामले में साझा इरादा साबित होना आवश्यक है. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी मध्य प्रदेश में साल 2004 में एक महिला के अपहरण और गैंगरेप के मामले में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए की. दरअसल, आरोपी राजू ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा उसकी सजा को बरकरार रखने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
जानें क्या है पूरा मामला?
दरअसल, जून 2004 में जब पीड़िता एक विवाह समारोह से लौट रही थी. तभी कुछ लोगों ने उसको किडनैप कर लिया. उसके बाद उसे कई स्थानों पर अवैध रूप से रखा गया. पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि जलंधर कोल और अपीलकर्ता राजू नाम के दो लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया. इस मामले में सरकारी वकील ने 13 गवाह पेश किए, जिनमें पीड़िता, उसके पिता और जांच अधिकारी शामिल थे.
ट्रायल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को गैंगरेप, अपहरण और अवैध बंदीकरण के मामले में दोषी ठहराया. इस मामले में कोर्ट ने राजू को आजीवन कारावास और जलंधर कोल को 10 साल की सजा सुनाई. इस फैसले के खिलाफ राजू मध्य प्रदेश हाईकोर्ट पहुंचा. जहां से उसे राहत नहीं मिली और हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.
आखिर में राजू ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. जबकि, जलंधर कोल ने हाईकोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती नहीं दी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की सभी धाराओं में दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन मामले के सह-आरोपी जलंधर कोल को 10 साल की सजा मिलने की वजह से राजू की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 वर्ष का कठोर कारावास कर दिया.
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, एफआईआर में केवल जलंधर कोल द्वारा दुष्कर्म करने की बात कही गई, लेकिन पीड़िता ने अपने बयान में साफ कहा कि राजू ने भी उसके साथ दुष्कर्म किया था. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही यह मान लिया जाए कि राजू ने दुष्कर्म नहीं किया. बावजूद इसके वह सामूहिक रेप के लिए दोषी होगा, अगर उसने साझा मंशा के तहत अन्य आरोपी के साथ कार्य किया हो.
इस मामले में कोर्ट ने प्रमोद महतो बनाम बिहार राज्य (1989) के मामले का हवाला भी दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि, 'ऐसे मामलों में यह जरूरी नहीं कि सभी आरोपियों ने दुष्कर्म किया हो और उसका प्रमाण मिला हो. यदि उन्होंने एक साथ ये कार्य किया और पीड़िता के साथ दुष्कर्म की मंशा में शामिल रहे हों तब भी सभी दोषी होंगे.