सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में एक आईपीएस अधिकारी और उनके माता-पिता को निर्देश दिया है कि वे अपने पूर्व पति और उनके परिवार से सार्वजनिक रूप से और बिना शर्त माफी मांगें. यह माफी उन्हें वैवाहिक विवाद के दौरान दर्ज किए गए कई आपराधिक मामलों से हुई "शारीरिक और मानसिक पीड़ा" के लिए मांगनी होगी.अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि पत्नी द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए (घरेलू क्रूरता), 307 (हत्या का प्रयास), और 376 (बलात्कार) जैसे गंभीर आरोपों के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे. इन गंभीर आरोपों के चलते पूर्व पति को 109 दिन और उनके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े.
क्या है पूरा मामला
पत्नी ने पति और उनके परिवार के खिलाफ कुल छह अलग-अलग आपराधिक मामले दायर किए थे. इनमें घरेलू क्रूरता, हत्या के प्रयास और बलात्कार जैसे संगीन आरोपों वाली एक FIR शामिल थी. इसके अलावा, आपराधिक विश्वासघात (आईपीसी की धारा 406) के तहत दो आपराधिक शिकायतें और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत तीन शिकायतें भी दर्ज की गई थीं. पत्नी ने तलाक और भरण-पोषण के लिए भी पारिवारिक न्यायालय में कई मामले दायर किए थे.
न्यायपालिका का अनुच्छेद 142 के तहत हस्तक्षेप
पति ने तलाक के लिए अर्जी दी थी, और दोनों पक्षों ने अपने-अपने मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की थी. संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2018 में इस विवाह को भंग कर दिया. कोर्ट ने पाया कि पति के खिलाफ दर्ज किए गए कई आपराधिक मामलों के कारण रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ गई थी कि सुलह की कोई संभावना नहीं बची थी. न्यायालय ने दोनों पक्षों के बीच लंबित सभी आपराधिक और दीवानी मुकदमों को भी रद्द करने या वापस लेने का आदेश दिया था. यह फैसला उन स्थानांतरण याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आया, जिनमें पति-पत्नी ने एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज मामलों को स्थानांतरित करने की मांग की थी.