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Supreme Court Photograph: (Social Media)
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही बवाल मचा हुआ है. लोगों का एक धड़ा चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट इस आदेश में राहत दे जबकि एक धड़े के हिसाब से ये निर्णय बिल्कुल सही है. वहीं इस विवाद के बीच एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में तीन नए जजों की स्पेशल बेंच इस मामले पर गुरुवार 14 अगस्त को सुनवाई करेगी. बता दें कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में 'कान्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया)' की ओर से आवारा कुत्तों से जुड़ी याचिका का उल्लेख किया गया.
वकील ननिता शर्मा ने इस मुद्दे को न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष रखा. उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि इस मामले की तत्काल सुनवाई की जाए, क्योंकि विभिन्न पीठों की ओर से जारी किए गए आदेशों में परस्पर विरोधाभास है.
14 अगस्त को नई पीठ करेगी सुनवाई
इससे पहले बुधवार को मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि वे इस पर गौर करेंगे. बाद में उन्होंने यह मामला एक तीन-सदस्यीय विशेष पीठ को सौंप दिया, जिसमें न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया शामिल हैं. यह नई पीठ गुरुवार को इस याचिका पर सुनवाई करेगी.
न्यायपालिका की दो अलग राय
वकील ननिता शर्मा ने अदालत के समक्ष दो अलग-अलग पीठों के आदेशों का हवाला दिया. एक ओर, न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला की पीठ ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को हटाकर स्थायी आश्रय गृहों में भेजने का निर्देश दिया. वहीं, दूसरी ओर मई 2024 में न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट कहा कि किसी भी स्थिति में आवारा कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं की जा सकती.
पशु कल्याण बनाम जन सुरक्षा
यह मामला अब एक संवेदनशील संतुलन की मांग करता है एक ओर मानव अधिकारों और सार्वजनिक सुरक्षा का प्रश्न है, और दूसरी ओर पशु अधिकारों और करुणा की भावना. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने अपने आदेश में कहा था कि "हर जीवित प्राणी के प्रति करुणा होनी चाहिए" और कुत्तों की हत्या को अनुचित बताया.
बहरहाल यह मामला अब देशभर के लिए एक मिसाल बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह निर्धारित करेगा कि भारत में आवारा कुत्तों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए. क्या वे केवल एक सार्वजनिक खतरा हैं या उनके प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है. गुरुवार को होने वाली सुनवाई से यह स्पष्ट होगा कि न्यायपालिका इस संतुलन को कैसे साधती है.
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