Shibu Soren Death: 11 जनवरी 1944 में जन्में शिबू सोरेन ने 4 अगस्त 2025 को अंतिम सांसें लीं. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. उनके निधन पर उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि मैं आज शून्य हो गया हूं. आखिर शिबू सोरेन कौन थे, उनके बारे में आइये सब कुछ जानते हैं…
Shibu Soren Death: पिता शिक्षक और खुद 10वीं पास
शिबू सोरेन का जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था. रामगढ़ जिला आज तो झारखंड का हिस्सा है पर एक जमाने में ये बिहार का अंग हुआ करता था. शिबू सोरेन उन चुनिंदा नेताओं में से एक थे, जिन्होंने झारखंड को अलग प्रदेश बनाने में अहम भूमिका निभाई. शिबू संथाल समुदाय से ताल्लुक रखते थे. शिबू के पिता सोबरन सोरेन शिक्षक और गांव के नेता था. पिता शिक्षक थे लेकिन शिबू 10वीं पास हैं. दरअसल, 1957 में सोबरन की मौत हो गई थी, जिसके बाद शिबू की पढ़ाई छूट गई थी.
18 वर्ष की आयु में उन्होंने संथाल नवयुवक संघ की स्थापना की. आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए शिबू ने झारखंड सहित बिहार और आसपास के क्षेत्रों में आदिवासियों के लिए अलग राज्य बनाने की मांग उठाई और झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी जेएमएम की स्थापना की.
Shibu Soren Death: 10वीं पास शिबू सोरेन, तीन बार मुख्यमंत्री, पांच बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे
शिबू सोरेन ने 1977 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने 1980 में दुमका से उन्हें जीत दर्ज क. इसके बाद 1989, 1991, 1996 और 2004 लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की और ससंद में पहुंचते रहे. 2002 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए थे लेकिन उसी साल उन्होंने दोबारा दुमका लोकसभा उप चुनाव लड़ा और जीत हासिल करके लोकसभा पहुंच गए.
शिबू तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. पहली बार 12 मार्च 2005 में 10 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने. दूसरी बार 17 अगस्त 2008 से लेकर 18 जनवरी 2009 तक वे मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद तीसरी बार वे 30 दिसंबर 2019 से लेकर 31 मई 2010 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. केंद्र सरकार में भी शिबू सोरेन मंत्री रहे हैं.
Shibu Soren Death: शिबू पर लगे ये आरोप
शिबू के खिलाफ कई सारे आरोप लगे हैं, जैसे- सचिव हत्याकांड, चिरूडीह हिंसा कांड आदि. कुछ मामलों में तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
Shibu Soren Death: शिबू सोरेन की प्रमुख उपलब्धियाँ
शिबू सोरेन शराबबंदी, महाजनी प्रथा और आदिवासी भूमि अधिकार के लिए आंदोलन कर चुके हैं, जिस वजह से आदिवासी समाज के शीर्ष नेताओं में उनकी गिनती होती है. आदिवासी समाज की ओर से उन्हें दिशोम गुरू की उपाधि दी गई है.