Shahbaz-Erdogan meeting: भारत के खिलाफ नई 'जिहादी' जुगलबंदी, कैसे बन रहा है भारत विरोधी ट्रांसनेशनल नेटवर्क?

पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन की एक महीने में दो बार मुलाकात ने खलबली मचा दी है.

पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन की एक महीने में दो बार मुलाकात ने खलबली मचा दी है.

Madhurendra Kumar & Mohit Sharma
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Shahbaz-Erdogan meeting

Shahbaz-Erdogan meeting Photograph: (Social Media)

भारत की जमीन पर आतंकवादी हमले, वैश्विक मंचों पर दुष्प्रचार, और एनजीओ के जरिए प्रोपेगैंडा—यह कोई संयोग नहीं बल्कि एक सुनियोजित भारत विरोधी गठजोड़ है, जिसका नेतृत्व कर रहे हैं पाकिस्तान और तुर्की. पहलगाम आतंकी हमला, भारत की ओर से ऑपरेशन सिंदूर और इस दौरान तुर्कीए का सैन्य सपोर्ट दुनिया के सामने है. 

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एक महीने में दो बार शाहबाज़-एर्दोआन की मुलाकात, संयोग नहीं साज़िश!

पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन की एक महीने में दो बार मुलाकात ने खलबली मचा दी है. यह सिर्फ कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि भारत विरोधी एजेंडे की एक गहरी साजिश का हिस्सा है.

इस गठजोड़ की जड़ें 2018 से दिखने लगी थी, जब पाकिस्तान और तुर्की ने मिलकर सोशल मीडिया पर समन्वित अभियानों से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू किया. 2022 में साराज़ेवो में आयोजित RToK (Real Tribunal on Kashmir) इसका एक बड़ा उदाहरण था, जहां भारत को युद्ध अपराधों का दोषी ठहराने की कोशिश की गई.

एर्दोआन परिवार की ऑपरेशनल नेटवर्किंग

तुर्की की भूमिका सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि ऑपरेशनल भी है. एर्दोआन परिवार की अगुवाई में कई एनजीओ और संस्थान वैश्विक स्तर पर इस्लामिक पहचान की राजनीति करते हुए आतंकवाद और भारत विरोधी अभियानों को समर्थन दे रहे हैं. इनमें से प्रमुख संस्थान TUGVA है, जिसके सलाहकार बोर्ड में एर्दोआन के पुत्र बिलाल एर्दोआन भी शामिल हैं.

6 अप्रैल को TUGVA ने कश्मीर मूल के विवादित व्यक्ति मुजम्मिल ठाकुर को मुख्य अतिथि बनाया. इसके बाद तुर्की के राज्य-समर्थित मीडिया चैनल TRT World ने उसे एक लंबा इंटरव्यू दिया, जिसमें उसने भारत के खिलाफ दुष्प्रचार किया. TRT ने 2016 में भी उसे "कश्मीर प्रतिरोध का चेहरा" बताकर वैश्विक मंच दिया था.

कश्मीर से लेकर फलस्तीन तक: BDS मुहिम में भारत को घसीटना

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान-तुर्की गठबंधन ने भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर Boycott, Divestment, Sanctions (BDS) अभियान शुरू किया. यह अभियान फलस्तीनी आंदोलन की तर्ज पर भारत के खिलाफ चलाया गया. इस अभियान में Kashmir Civitas, Center for Islam and Global Affairs और International University of Sarajevo जैसे संस्थान भी जुड़े.

सोशल मीडिया दुष्प्रचार और फर्जी अरब अकाउंट्स

2020 में इस्लामोफोबिया के नाम पर OIC की आलोचना के बाद पाकिस्तान ने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए "अरब रॉयल" बनकर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाया. इसके जरिए एक सुनियोजित तरीके से भारत को इस्लाम विरोधी दिखाने की कोशिश की गई.

तुर्की मूल के हकान कामुज़ द्वारा संचालित यूके स्थित फर्म Stoke White ने 2022 में भारत के गृहमंत्री और सेना प्रमुख के खिलाफ 'युद्ध अपराधों' के आरोपों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकदमा चलाने की मांग की. यह अभियान पाकिस्तानी थिंक टैंक LFOVK के साथ मिलकर चलाया गया, जिसने #ArrestIndianArmyChief ट्रेंड भी चलाया.

TRT और Anadolu: भारत विरोधी प्रचार के अड्डे

तुर्की के राज्य-नियंत्रित मीडिया चैनल TRT World और Anadolu Agency ने जम्मू-कश्मीर पर 30 से अधिक पक्षपातपूर्ण रिपोर्टें प्रकाशित कीं, जिनमें से कई पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय द्वारा अनुशंसित थीं. TRT World में 300 में से 50 पाकिस्तानी कर्मचारी कार्यरत थे.

साझा एजेंडा: भारत, फ्रांस, सऊदी और UAE पर निशाना

यह गठबंधन न केवल भारत, बल्कि फ्रांस, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों पर भी केंद्रित है. 2020 में तुर्की और पाकिस्तान ने मिलकर #BoycottFrenchProducts और #BoycottUAE जैसे ट्रेंड चलाए, जब इन देशों ने एर्दोआन की नीतियों का विरोध किया.

तुर्की-पाकिस्तान सैन्य, तकनीकी और प्रोपेगैंडा गठजोड़

शाहबाज शरीफ की इस विजिट के दौरान जो विमर्श और समझौते उभरकर दोनों देशों के सामने आ रहे है उनमें रक्षा सौदे, सैन्य अभ्यास, तकनीकी समझौते, सोशल मीडिया और मीडिया समन्वय, मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे कट्टरपंथी संगठनों से तालमेल प्रमुखता से शामिल है. इन सभी पहलुओं से स्पष्ट है कि तुर्की और पाकिस्तान का गठबंधन भारत के खिलाफ न केवल सैद्धांतिक है, बल्कि इसमें प्रायोगिक क्रियाएं, प्रोपेगैंडा, एनजीओ नेटवर्क, मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कानूनी हमले तक शामिल हैं.

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