डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की टैरिफ पॉलिसी पर हाल ही में सामने आए सरकारी डॉक्यूमेंट्स ने जैसे भूचाल ला दिया है. इनसे साफ़ हो गया है कि अमेरिका ने आयात पर लगने वाले टैक्स को सिर्फ व्यापार घाटा कम करने के लिए नहीं बल्कि दूसरे देशों पर दबाव बनाने के एक बड़े हथियार की तरह इस्तेमाल किया. द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ के साथ ऐसी-ऐसी शर्तें जोड़ दी जो आमतौर पर किसी भी ट्रेड डील में नहीं होती. जैसे किसी देश से अमेरिकी फौज की तैनाती में बदलाव करवाना, ज्यादा हथियार खरीदवाना या फिर कुछ खासअमेरिकी कंपनियों के हित साधना.
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अमेरिका ने एक तीर से साधे कई निशाने
उदाहरण के तौर पर दक्षिण कोरिया से कहा गया कि वह चीन को रोकने के लिए अपना रक्षा खर्च बढ़ाएं और अमेरिकी हथियार खरीदे. साथ ही अमेरिकी सैनिकों की तैनाती में बदलाव का समर्थन करें. इजराइल पर दबाव था कि वह हाइपा से चीनी कंपनी का कंट्रोल हटाए. भारत भी इस रणनीति का सीधा निशाना बना. ट्रंप ने कई बार चेतावनी दी कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा तो उस पर 50% तक टैरिफ लगा दिया जाएगा. अमेरिका का तर्क था कि रूस को तेल बेचकर मिलने वाला पैसा यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देता है. यह पूरा मामला दिखाता है कि वाशिंगटन ने अपने व्यापारिक टैक्स को भू राजनीतिक एजेंडे के साथ जोड़कर इस्तेमाल किया.
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कई देशों पर डाला गया दबाव
दस्तावेज बताते हैं कि ताइवान, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों पर भी दबाव डाला गया कि वह अपना रक्षा खर्च बढ़ाएं और ज्यादा अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर खरीदें. इतना ही नहीं ट्रंप प्रशासन ने कुछ अमेरिकी कंपनियों को भी सीधे-सीधे फायदा पहुंचाने की कोशिश की. जैसे अफ्रीकी देश लेसोथो से कहा गया कि वह स्टारलिंक को बिना दफ्तर खोले काम करने दे और एक अमेरिकी रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी को टैक्स में छूट दे. इजराइल को चेतावनी दी गई कि वह शिवरॉन के गैस प्रोजेक्ट में दखल ना दें. इस रणनीति का एक और बड़ा मकसद चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना था. उदाहरण के लिए कंबोडिया में अमेरिकी नौसेना की सालाना विजिट की शर्त रखी गई.