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Russia or America Photograph: (AI)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ(25 प्रतिशत टैरिफ और 25 प्रतिशत पेनाल्टी) लगाने के बाद दोनों देशों के संबंध निचले स्तर पर आ गए हैं. यह अमेरिका द्वारा किसी भी देश पर लगाया गया अधिकतम टैरिफ है. अमेरिका का कहना है कि भारत चीन के बाद रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है. भारत द्वारा खरीदे जा रहे तेल के पैसे का इस्तेमाल रूस यूक्रेन वॉर में कर रहा है. इसके साथ ही भारत दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाला देश है. यही वजह है कि भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है. इसके साथ ही अमेरिका ने साफ कहा है कि अगर भारत रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखता है तो टैरिफ को बढ़ाया भी जा सकता है.
एक मजबूत ट्रेड पार्टनर तो दूसरे भरोसेमंद दोस्त
ऐसे में अगर भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखता है तो अमेरिका के साथ हमारे संबंध और ज्यादा बिगड़ सकते हैं. तो क्या हमें अमेरिका को चुनने के लिए रूस से रिश्ता तोड़ना होगा. रूस के साथ भारत के पुराने संबंध हैं. दोनों देश भरोसेमंद दोस्त हैं. डिफेंस डील से एनर्जी सप्लाई तक रूस भारत का अहम साझेदार रहा है. एस्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के अनुसार साल 2019 से 2023 के बीच भारत में रूस से होने वाले हथियारों का आयात 36 प्रतिशत था. वहीं पिछले कुछ सालों में रूस से मिलने वाले सस्ते कच्चे तेल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति दी है. वहीं, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वित्त वर्ष 2024-25 में दोनों देशों के बीच 131.84 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ. भारत की हाई-टेक डिफेंस उपकरण से लेकर स्वच्छ ऊर्जा तक के फील्ड में अमेरिका पर निर्भरता है.
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यूक्रेन वॉर को लेकर अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव में भारत के लिए किसका साथ फायदे का सौदा रहेगा. या फिर अगर भारत को रूस और अमेरिका में से एक को चुनना पड़े तो भारत किसको चुनेगा.
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रूसी सस्ता तेल भारतीय अर्थव्यवस्था को दे रहा गति
फायदे और नुकसान के नजरिए से देखें तो भारत अपनी कुल जरूरत का लगभग 88 प्रतिशत तेल आयात करता है. कमर्शियल मिनिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्त वर्ष (2024-25) में भारत ने अपने कुल आयात का करीब 35 प्रतिशत तेल रूस से खरीदा, जबकि 2018 में रूस से भारत का तेल आयात केवल 1.3 प्रतिशत ही था. क्योंकि युक्रेन वॉर के दौरान रूस पर वेस्टर्न देशों ने कई तरह के बैन लगा दिए हैं, जिसकी वजह से रूस सस्ता तेल बेच रहा है. भारत ने इसका बड़ा फायदा उठाया है. आंकड़ें बताते हैं कि रूस से तेल खरीदने में भारत के सालाना 10 बिलियन डॉलर बच रहे हैं.
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अमेरिका से व्यापार भारत के पक्ष में
उधर, अमेरिका हमारा बड़ा ट्रेड पार्टनर है. भारत लगभग 87 बिलियन डॉलर का सामान अमेरिका का निर्यात करता है. इस द्विपक्षीय व्यापार में लगभग 41 बिलियन डॉलर का व्यापार भारत के पक्ष में है. यानी ट्रेड सरप्लस है. क्योंकि अब अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है. तो भारत का निर्यात घटना तय है, जिसमें 30 बिलियन तक गिरावट की उम्मीद जताई जा रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार इससे भारत को करीब 50 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है. जबकि इससे देश में 50 लाख तक नौकरिया जा सकती है.
क्या कहते हैं इतिहास के पन्ने
ये तो हुई व्यापारिक फायदे और नुकसान की बात. जियो पॉलिटिक्स और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर देखें तो संकट के समय भारत के साथ हमेशा रूस ही खड़ा हुआ है न कि अमेरिका. फिर चाहे 1971 में भारत-पाकिस्तान वॉर में सहायता हो या फिर 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के समय भारत को हथियारों की आपूर्ति जारी रखना. रूस ने हमारा कदम-कदम पर साथ दिया है. जानकारों की मानें तो अमेरिका के बारे में कुछ भी सुनिश्चित नहीं है. खास तौर पर डोनाल्ड ट्रंप को लेकर. अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद भी कर देता है तो यह भी जरूरी नहीं है कि अमेरिका भारत से 25 प्रतिशत टैरिफ हटा ही लेगा. जबकि रूस से भारत के साथ व्यापार में किसी भी तरह की कोई शर्त नहीं रखी है.