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mohan bhagwat Photograph: (X)
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संघ की शताब्दी वर्ष व्याख्यानमाला में भारत के विश्व गुरु बनने को लेकर साफ किया कि यह किसी राजनीतिक विचारधारा से नहीं है. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की विभिन्न धाराओं का उल्लेख करते हुए संघ को सामाजिक सुधार और एकजुटता का माध्यम बताया है.
मात्र सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को नहीं भगाया जा सका
RSS प्रमुख ने यह स्पष्ट किया कि संघ की स्थापना भारत को विश्व गुरु बनाने के लक्ष्य से की गई थी. उन्होंने कहा कि भारत केवल भूगोल नहीं है. यह एक संस्कृति की तरह है. संघ किसी राजनीतिक विचारधारा को लेकर नहीं बना. न ही किसी स्थिति की प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू किया गया. इसका लक्ष्य हिंदुओं का विकास है.' उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ का हवाला देते हुए कहा कि पहले कई तरह के प्रयास हो चुके हैं. 1857 के सिपाही विद्रोह के जरिए अग्रेजों के विरुद्ध प्रयास किया गया. मगर असफल रहा. बाद में सामने आया कि मात्र सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को नहीं भगाया जा सकता है.
समाज अपनी जड़ों को भूल रहा है
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की विभिन्न धाराओं पर जिक्र किया. आरएसएस प्रमुख के अनुसार, राजाओं और सेना ने लड़ाई लड़ी, लेकिन समाज ने पूरी तरह से साथ नहीं ​दिया. कई लोगों ने लड़ाई लड़ी. कुछ लोग जेल गए, कुछ ने सत्याग्रह में चरखा चलाया. एक अन्य वर्ग का कहना है कि पहले समाज में सुधार होना जरूरी है. इसके बाद स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. राजा राममोहन राय उनमें से एक बताए जाते थे.दूसरी धारा स्वामी विवेकानंद और दयानंद स्वामी की थी. इनका मानना था कि समाज अपनी जड़ों को भूल रहा है. उसे एकजुट होने की जरूरत है.
भाजपा के चश्मे से देखने की गलती न करें
भागवत ने कहा, 'संघ आया है पूर्ण करने के लिए. नष्ट करने को लेकर नहीं. संघ का काम किसी से प्रतिस्पर्धा या लाभ लेना नहीं है.' उन्होंने संघ को किसी सेवा संगठन या भाजपा के चश्मे से देखने की गलती न करने की अपील की है'.
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