मशहूर साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, ज्ञानपीठ पुरस्कार से थे सम्मानित

Vinod Kumar Shukla Passed Away: एम्स प्रशासन के मुताबिक, विनोद कुमार शुक्ल 2 दिसंबर से अस्पताल में भर्ती थे. वे गंभीर श्वसन संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे. उन्हें इंटरस्टिशियल लंग डिजीज और गंभीर निमोनिया की समस्या थी.

Vinod Kumar Shukla Passed Away: एम्स प्रशासन के मुताबिक, विनोद कुमार शुक्ल 2 दिसंबर से अस्पताल में भर्ती थे. वे गंभीर श्वसन संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे. उन्हें इंटरस्टिशियल लंग डिजीज और गंभीर निमोनिया की समस्या थी.

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Dheeraj Sharma
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Vinod Kumar Shukla Death


Vinod Kumar Shukla Passed Away: हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को निधन हो गया. 89 वर्षीय शुक्ल पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के एम्स में भर्ती थे. चिकित्सकों के अनुसार उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी और लंबी बीमारी के बाद उन्होंने वहीं अंतिम सांस ली. उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है.

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लंबे समय से अस्वस्थ थे

एम्स प्रशासन के मुताबिक, विनोद कुमार शुक्ल 2 दिसंबर से अस्पताल में भर्ती थे. वे गंभीर श्वसन संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे. उन्हें इंटरस्टिशियल लंग डिजीज और गंभीर निमोनिया की समस्या थी. इसके अलावा वे टाइप-2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप से भी पीड़ित थे, जिससे उनकी स्थिति और जटिल हो गई थी.

राजनांदगांव से साहित्य की दुनिया तक

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ था. उन्होंने शिक्षा को अपना पेशा बनाया, लेकिन उनका अधिकांश जीवन साहित्य सृजन को समर्पित रहा. वे हिंदी भाषा के ऐसे रचनाकार थे, जिनकी पहचान सरल शब्दों में गहरी संवेदनशीलता व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता से बनी.

ज्ञानपीठ पुरस्कार से हुआ ऐतिहासिक सम्मान

हिंदी साहित्य में उनके असाधारण योगदान को देखते हुए वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया. वे हिंदी के 12वें साहित्यकार थे जिन्हें यह सर्वोच्च सम्मान मिला और छत्तीसगढ़ के पहले लेखक बने जिन्हें ज्ञानपीठ से नवाजा गया. यह सम्मान उनके जीवन और लेखन की ऐतिहासिक उपलब्धि माना जाता है.

कविता और उपन्यास में समान रूप से सशक्त

विनोद कुमार शुक्ल एक साथ कवि, कथाकार और उपन्यासकार थे. उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई. इसके बाद उन्होंने कविता और कथा साहित्य दोनों में अपनी अलग पहचान बनाई. उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं. ‘नौकर की कमीज’ पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणिकौल ने इसी नाम से फिल्म भी बनाई थी.

पुरस्कारों और मान्यता की लंबी सूची

उनके उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनका लेखन न तो शोर करता है, न ही दिखावे में विश्वास रखता है, बल्कि बेहद शांत ढंग से पाठक के मन में उतर जाता है.

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