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Ratan Tata Family: ऐसे पड़ा 'टाटा' सरनेम, अनाथालय में पढ़ रहे थे पिता नवल, तब पहली बार बड़े बिजनेसमैन की पड़ी थी नजर

रतन टाटा ने बुधवार की रात दुनिया को अलविदा कह दिया है. वे ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे. क्या आप जानते हैं कि 'टाटा' सरनेम उनके पिता नवल को विरासत में नहीं मिला था. जानें पूरी कहानी. 

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Mohit Saxena
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naval and ratan tata

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रतन टाटा ने बुधवार की रात दुनिया को अलविदा कह दिया. वह ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे. उनके नाम से कई ऐसी उपलब्धियां जुड़ीं हैं जो कभी भुलाई नहीं जा सकेंगी. आपको जानकर  हैरानी होगी की रतन टाटा के पिता नवल टाटा के परिवार में किसी भी शख्स के नाम के आगे टाटा नहीं था. उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय था. वह जब 13 साल के थे तो उन्हें अनाथालय पढ़ाई करने के लिए भेज दिया गया था. आपको बाता दें कि नवल का टाटा परिवार से कोई रिश्ता नहीं था. नवल का जन्म 30 अगस्त 1904 को होर्मुसजी के घर पर हुआ था. उनका परिवार मुंबई में रहा करता था. मगर पिता की असमय मृत्यु हो जाने के कारण परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा. 1908 में उनके नवल के पिता का निधन हो गया था.

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पिता के जाने के बाद परिवार को गुजरात में शिफ्ट होना पड़ा. यहां पर मां ने कपड़े की कढ़ाई का काम करना शुरू कर दिया. इस काम से होने वाली इनमक से परिवार का गुजर बसर चल रहा था. नवल की उम्र बढ़ रही तो मां को उनकी पढ़ाई की चिंता होने लगी. उन्होंने पढ़ाई के लिए नवल को जेएन पेटिट पारसी अनाथालय भेज दिया गया. 

यहां पर नवल ने शुरूआती पढाई लिखाई शुरू की. जब वे 13 साल के हुए तब 1917 में सर रतन टाटा मशहूर पारसी उद्योगपति और जमशेदजी नासरवान जी टाटा के पुत्र यहां पर आए. उनके साथ उनकी पत्नी नवाजबाई भी थीं. यहां पर उन्हें नवल दिखाई दिए. नवाजबाई को नवल काफी पसंद आए और उन्होंने अपना बेटा बनाकर उन्हें गोद ले लिया. इसके बाद ‘नवल’ टाटा परिवार से जुड़कर ‘नवल टाटा’ हो गए.

26 वर्ष की उम्र में टाटा ग्रुप से जुड़े 

टाटा परिवार के साथ जुड़ने के बाद नवल की किस्मत चमकने लगी. वे शुरू से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे. उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकॉनामिक्स से अपना स्नातक किया. नवल टाटा अकाउंटिंग की पढ़ाई कर जब लौटे तो 1930 में टाटा में क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी की नौकरी पाई. इसके बाद वे तेजी से पदोन्नति करते चले गए. वह जल्द टाटा संस के असिस्टेंट सेक्रेटरी बनग गए. 

लगातार मिलता गया प्रमोशन 

1933 में नवल टाटा एविएशन डिपार्टमेंट सेक्रेटरी और इसके बाद टेक्सटाइल यूनिट में एग्जीक्यूटिव बने. उसके बाद 1939 में नवल टाटा को टाटा मिल्स के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर का पद मिला. दो साल बाद 1941 में उन्हें टाटा संस का डायरेक्टर नियुक्त किया गया. नवल टाटा को 1961 में टाटा इलेक्ट्रिक कंपनी के चेयरमैने बनाया गया. इसके एक साल बाद उन्हें टाटा संस के मुख्य ग्रुप का डिप्टी चेयरमैन नियुक्त किया गया. जब वह 1965 में टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने तो उन्होंने कहा था कि वह भगवान के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने मुझे गरीबी की पीड़ा अनुभव करने का अवसर दिया. 

नवल टाटा ने दो शादियां कीं

नवल टाटा ने दो शादियां की थींं. पहली पत्नी सूनी कॉमिस्सैरिएट और दूसरी सिमोन डुनोयर थीं. सूनी कॉमिस्सैरिएट से उनकी दो औलादें हुईं. रतन टाटा और जिमी टाटा हुए. 1940 में सूनी कॉमिस्सैरिएट से उनका तलाक हो गया. 1955 में नवल टाटा ने स्विट्जरलैंड की बिजनेसवूमन सिमोन से शादी रचाई. इससे नियोल टाटा का जन्म हुआ. नवल टाटा कैंसर की बीमारी से ग्रस्त थे.  5 मई 1989 को उन्होंने मुंबई में अंतिम सांसें लीं. 

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