राजनाथ सिंह की चीन यात्रा: भारत की आतंकवाद पर स्पष्ट नीति के सामने SCO में चीन-पाक की दोहरी चालें बेनकाब

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तीर्थयात्रियों पर हुआ आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है.  पहलगाम आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों का हाथ जगजाहिर है.

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तीर्थयात्रियों पर हुआ आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है.  पहलगाम आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों का हाथ जगजाहिर है.

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Madhurendra Kumar
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Rajnath Singh China visit

Rajnath Singh China visit Photograph: (News Nation)

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की 24 से 26 जून, 2025 के बीच चीन के क़िंगदाओ दौरे ने केवल द्विपक्षीय संबंधों की नहीं, बल्कि भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा नीति की भी एक बड़ी परिपक्वता का परिचय दिया. यह शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भागीदारी भर नहीं थी - यह भारत के पक्ष से साहसिक कूटनीतिक स्टैंड का संकेत भी था.

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इस दौरे की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि राजनाथ सिंह ने SCO की संयुक्त घोषणा  पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि इसमें आतंकवाद को लेकर भारत के रुख को कमजोर किया गया था, और पाकिस्तान तथा चीन की ओर से एजेंडे को "पानी-पानी" करने की कोशिश की गई थी.

पहलगाम हमला और भारत की तीखी प्रतिक्रिया

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तीर्थयात्रियों पर हुआ आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है.  पहलगाम आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों का हाथ जगजाहिर है. ऐसे में भारत के लिए यह अस्वीकार्य था कि SCO जैसे बहुपक्षीय मंच पर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की भावना को कमजोर किया जाए या "आतंकवाद" शब्द को केवल सामान्य शब्दों में समेटा जाए. ऐसे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकवाद पर भारत के जीरो टॉलरेंस नीति को फिर परिभाषित किया और एससीओ के मंच पर चीन पाकिस्तान के सामने कड़ा स्टैंड रखा.

भारत-चीन संबंधों की नई कसौटी

यह दौरा 2020 के लद्दाख सीमा गतिरोध और गालवान हिंसा के बाद किसी भी भारतीय रक्षा मंत्री की पहली चीन यात्रा थी. भारत की ओर से इस यात्रा का लक्ष्य स्पष्ट था — शांति, संवाद और सुरक्षा पर आधारित संबंधों को फिर से शुरू करना.

भारत ने यह साफ संदेश दिया कि वह संवाद के लिए तैयार है, लेकिन "संप्रभुता, आतंकवाद और सीमा स्थिरता" पर कोई समझौता नहीं करेगा.

भारत की आक्रामक कूटनीति का परीक्षण

राजनाथ सिंह की यह SCO यात्रा न केवल एक औपचारिक मुलाक़ात थी, बल्कि यह जांचने का भी एक अवसर थी कि क्या भारत और चीन साझा आधार पर काम कर सकते हैं या नहीं. भारत का निर्णय — संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर न करना — इस बात का परिचायक है कि भारत अब बहुपक्षीय मंचों पर "कूटनीतिक संकोच" नहीं, बल्कि "नीतिगत स्पष्टता" के साथ खड़ा है.

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