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Putin and Trump Alaska meeting Photograph: (Social Media)
रूस-यूक्रेन युद्ध और ट्रंप के टैरिफ वॉर के बीच पूरी दुनिया की नजरें इस समय 15 अगस्त को रसियन राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच होने वाली बैठक पर टिकी हैं. दोनों शक्तिशाली नेताओं के बीच यह बैठक अमेरिका के अलास्का में होने वाली है. ये बैठक रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर तो महत्वपूर्ण है ही, साथ में भारत जैसे देशों को व्यापारिक हितों के लिहाज से भी काफी अहम है. क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने कह दिया है कि अगर रूस यूक्रेन में सीजफायर करने के लिए सहमत नहीं होता तो उसे बेहद गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
क्या है डोनाल्ड ट्रंप का एजेंडा
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप जनवरी 2025 में अमेरिका की सत्ता में आए थे. सत्ता में आने से पहले यानी चुनावी अभियान के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी जनता से वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो 24 घंटे के भीतर रूस और यूक्रेन युद्ध को खत्म कर देंगे. लेकिन अब छह महीने बीत जाने के बाद भी ट्रंप दोनों देशों के बीच सीजफायर नहीं करा सके हैं. हालांकि शुरुआती दौर में ट्रंप रूसी राष्ट्रपति पुतिन को लेकर निश्चिंत लग रहे थे. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र में भी उन्होंने पुतिन का पक्ष लिया था और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ व्हाइट हाउस में हुई बैठक के दौरान ट्रंप काफी सख्त नजर आए थे. शायद ट्रंप को लग रहा था कि पुतिन उनकी बात को नहीं टालेंगे और उनके कहने पर यूक्रेन वॉर खत्म कर देंगे. जबकि पुतिन की तरफ से उनको ऐसा कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. कई बार की बातचीत के बाद भी ट्रंप को कोई सफलता नहीं मिली, जिसके बाद उनको रूस पर प्रतिबंध और धमकी जैसे हथकंड़ों का अपनाना पड़ा. बावजूद इसके रूस युद्धविराम करने को सहमत नहीं हो सका.
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सेकेंड्री टैरिफ की जद में आया भारत
इसके बाद ट्रंप ने पुतिन पर दबाव बनाने के लिए रूस से व्यापारिक संबंध रखने वाले देशों को निशाना बनाना शुरू किया. खासतौर पर रूस से कच्चे तेल के खरीदार भारत और चीन जैसे देशों पर ट्रंप ने अनाप-शनाप टैरिफ लगाए. इस क्रम में ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ और रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 25 प्रतिशत पेनाल्टी लगाई. इस तरह से ट्रंप ने भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया, जो 21 अगस्त से लागू माना जाएगा. हालांकि 25 प्रतिशत टैरिफ भारत पर 7 अगस्त से लागू हो चुका है. भारत पर लगाया गया यह टैरिफ ट्रंप द्वारा दुनिया के किसी भी देश पर लगने वाला सबसे ज्यादा शुल्क है. दरअसल, ट्रंप का कहना है कि भारत चीन के बाद रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है. और भारत द्वारा खरीदे जाने वाले तेल का पैसे का इस्तेमाल रूस यूक्रेन वॉर में करता है. इसके साथ ही भारत रूस से बड़ी संख्या में हथियार भी खरीदता है, जो यूक्रेन के खिलाफ रूस के लिए मददगार साबित हो रहे हैं.
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भारत के लिए क्या हैं इस बैठक के मायने
दरअसल, ट्रंप का मानना है कि भारत जैसे देशों पर ज्यादा टैरिफ लगाने से उनकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा, जिसकी वजह से वो रूस से तेल खरीदना बंद कर देंगे. क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी देशों की तरफ से लगाए गए तमाम प्रतिबंधों के बाद रूस की इकॉनमी का बड़ा हिस्सा तेल निर्यात पर टिका है. ऐसे में तेल की बिक्री प्रभावित होने से रूस पर यूक्रेन वॉर रोकने का दबाव बनेगा. इसके साथ ही अलास्का में होने वाली बैठक से पहले ट्रंप ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर यूक्रेन वॉर रोकने पर सहमति नहीं बनी तो उसको गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. ऐसे में अगर ट्रंप 15 अगस्त को होने वाली बैठक में पुतिन को यूक्रेन वॉर रोकने के लिए सहमत कर लेते हैं तो भारत को टैरिफ वॉर से राहत मिल सकती है और जल्द ही अमेरिका के साथ ट्रेड डील भी साइन हो सकती है. लेकिन अगर इसके उलट होता है तो इसके लिए भारत को तैयार रहना पड़ेगा. क्योंकि बैठक के परिणाम सकारात्मक न निकलने पर ट्रंप रूस पर प्रतिबंध बढ़ाने के साथ ही भारत पर और ज्यादा टैरिफ बढ़ा सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. इसके साथ ही अमेरिका के साथ भारत के संबंध खटाई में पड़ सकते हैं.
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क्या रूस की ये 4 शर्त मानेंगे ट्रंप
- अब तक रूस यूक्रेन के जितने हिस्से पर कब्जा कर चुका है, रूस वहां से पीछे नहीं हटेगा.
- जहां तनाव की स्थिति है, वहां से यूक्रेनी सैनिकों की संख्या घटनी चाहिए.
- पुतिन और रूस पर लगे प्रतिबंधों को दुनिया को हटाना होगा.
- किसी भी सूरत में यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा.