संसद की कार्मिक, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक हुई. इस बैठक में न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए. बैठक में विधि मंत्रालय के सचिव भी पेश हुए. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बैठक में विधि मंत्रालय के सचिव उपस्थित रहे और सदस्यों ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले से लेकर न्यायाधीशों की आचार संहिता और सेवानिवृत्ति के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड’ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर चर्चा की.
आचार संहिता पर गहन चर्चा
सूत्रों के मुताबिक, बैठक में कई सदस्यों ने ये सवाल उठाया कि जजों के लिए बनी आचार संहिता व्यवहारिक रूप से लागू नहीं हो पा रही है. सूत्रों का यह भी दावा है कि एक सदस्य ने स्पष्ट कहा, “जब देश के सभी सरकारी अधिकारी अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा करते हैं, तो जजों को इससे छूट क्यों है?” उन्होंने इसे पारदर्शिता के सिद्धांत के खिलाफ बताया.
जस्टिस यशवंत वर्मा पर पूछे गए कड़े सवाल
सूत्रों ने यह भी कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर बैठक में तीखे सवाल पूछे गए. एक वरिष्ठ सांसद ने पूछा, “अगर उनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं, तो एफआईआर अब तक क्यों नहीं दर्ज हुई ?” सदस्यों ने यह भी सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने उनके केस वापस क्यों लिए, जबकि सस्पेंशन जैसी कोई व्यवस्था न्यायपालिका में नहीं है. ये भी सामने आया कि वर्मा को अब भी सरकारी गाड़ी और स्टाफ जैसी सुविधाएं मिल रही हैं. जिस पर कई सदस्यों ने नाराज़गी जताई और इसे "अप्रत्याशित विशेषाधिकार" बताया.
न्यायाधीशों की राजनीतिक सहभागिता पर चिंता
कुछ सदस्यों ने न्यायाधीशों द्वारा राजनीतिक रूप से संबद्ध कार्यक्रमों में भाग लेने पर भी आपत्ति जताई. बिना नाम लिए हाल के कुछ आयोजनों का जिक्र किया गया, जिनमें न्यायाधीशों की उपस्थिति पर सवाल खड़े किए गए.
वीरस्वामी मामले की समीक्षा का सुझाव
सूत्रों के अनुसार, समिति की बैठक में वीरस्वामी बनाम भारत सरकार (1991) के ऐतिहासिक निर्णय की समीक्षा का प्रस्ताव भी रखा गया. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया था कि किसी भी सिटिंग जज के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू करने से पहले राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश की अनुमति आवश्यक होगी. समिति के कुछ सदस्यों ने इसे "न्याय से परे विशेष सुरक्षा" बताते हुए इसकी पुनर्समीक्षा की आवश्यकता जताई.