हिंदू नहीं...इंडिया में मुस्लिम हैं सबसे अधिक अमीर, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

शब्द सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अति गरीबी लगभग खत्म हो चुकी है.

शब्द सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अति गरीबी लगभग खत्म हो चुकी है.

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Ravi Prashant
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Hindu person and Muslim person

पनगढ़िया रिपोर्ट 2025 Photograph: (Grok AI)

भारत में गरीबी को लेकर एक नई और चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के संस्थापक विशाल मोरे द्वारा तैयार किए गए एक रिसर्च पेपर में दावा किया गया है कि देश ने अति गरीबी को लगभग पूरी तरह से खत्म कर दिया है. 'इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली' में प्रकाशित इस रिपोर्ट में एक और अहम बात कही गई है कि भारत में मुसलमानों के बीच गरीबी की दर हिंदुओं के मुकाबले थोड़ी कम है. यह निष्कर्ष उस पुरानी और आम धारणा को गलत साबित करता है जिसमें माना जाता था कि मुस्लिम समुदाय आर्थिक रूप से हिंदुओं से ज्यादा पिछड़ा हुआ है.

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क्या कहते हैं आंकड़े?

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2011-12 से 2023-24 के बीच भारत में गरीबी में भारी गिरावट दर्ज की गई है. राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी दर 21.9 प्रतिशत से गिरकर अब केवल 2.3 प्रतिशत रह गई है. यानी पिछले 12 सालों में इसमें 19.7 प्रतिशत की कमी आई है. अगर धर्म के आधार पर देखें तो 2023-24 में हिंदुओं में गरीबी की दर 2.3 प्रतिशत थी, जबकि मुसलमानों में यह दर 1.5 प्रतिशत रही. आंकड़ों से साफ है कि मुसलमानों में गरीबी हिंदुओं की तुलना में कम है. साल 2022-23 में भी यही ट्रेंड देखने को मिला था, जब मुसलमानों में गरीबी 4 प्रतिशत और हिंदुओं में 4.8 प्रतिशत थी.

पुरानी धारणा में सुधार की जरूरत

लेखकों ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि यह आम धारणा कि मुसलमान हिंदुओं से ज्यादा गरीब हैं, उसे सुधारने की जरूरत है, कम से कम अति गरीबी के मामले में तो यह बिल्कुल सही नहीं है. विश्व बैंक के मानकों के अनुसार, क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 3 डॉलर से कम खर्च करने वाले को अति गरीब माना जाता है. लेखकों ने तेंदुलकर गरीबी रेखा को आधार मानकर यह विश्लेषण किया है. उनका कहना है कि पिछले दो दशकों में तेज आर्थिक विकास ने समाज के लगभग सभी वर्गों को अति गरीबी के स्तर से ऊपर उठा दिया है.

गांव और शहर का हाल

रिपोर्ट बताती है कि शहरों के मुकाबले गांवों में गरीबी ज्यादा तेजी से घटी है. ग्रामीण इलाकों में मुसलमानों की गरीबी दर 1.6 प्रतिशत है, जबकि हिंदुओं में यह 2.8 प्रतिशत है. शहरों की बात करें तो 2011-12 में शहरी मुसलमानों में गरीबी दर 20.8 प्रतिशत थी जो 2023-24 में घटकर 1.2 प्रतिशत हो गई है. वहीं शहरी हिंदुओं में यह 12.5 प्रतिशत से घटकर 1 प्रतिशत रह गई है. यह गिरावट अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग (FC) समेत सभी सामाजिक समूहों में देखी गई है.

राज्यों की स्थिति भी सुधरी

इस पेपर में अनुमान लगाया गया है कि अब किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में गरीबी दर दहाई के अंक में नहीं है. हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा, चंडीगढ़, दिल्ली और दमन-दीव जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गरीबी दर लगभग शून्य के करीब पहुंच गई है. रिपोर्ट के अनुसार, अति गरीबी अब मुख्य रूप से केवल आदिवासी आबादी के कुछ हिस्सों तक ही सीमित रह गई है, हालांकि वहां भी स्थिति में काफी सुधार हुआ है.

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