भारतीय सेना के उपसेनाध्यक्ष (कैपेबिलिटी डेवलपमेंट एंड सस्टेनेन्स) लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने शुक्रवार को कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत को न सिर्फ पाकिस्तान से बल्कि चीन और तुर्की जैसे देशों से भी समन्वित विरोध का सामना करना पड़ा. उन्होंने नई दिल्ली में फिक्की द्वारा आयोजित ‘New Age Military Technologies’ सम्मेलन में कहा कि “यह केवल एक सीमा थी, लेकिन तीन दुश्मन सक्रिय थे. पहले हम मानते थे कि दो मोर्चे हैं — अब वह दो से बढ़कर तीन या चार हो चुके हैं.”
पाकिस्तान की सैन्य प्रणाली का 81 प्रतिशत हिस्सा चीनी उपकरणों पर आधारित
उन्होंने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को चीन से न केवल अत्याधुनिक हथियार मिल रहे थे, बल्कि चीन की सहायता से उसे भारतीय सैन्य तैयारियों की ‘लाइव सैटेलाइट फीड’ भी प्राप्त हो रही थी. जनरल सिंह के अनुसार, DGMO स्तर की बातचीत के दौरान पाकिस्तान ने भारत से कहा, “हम जानते हैं कि आपका एक वेक्टर तैनात है, कृपया उसे पीछे हटाइए.” यह दर्शाता है कि चीन ने पाकिस्तान को वास्तविक समय की सूचनाएं उपलब्ध कराईं. उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान की सैन्य प्रणाली का 81 प्रतिशत हिस्सा चीनी उपकरणों पर आधारित है, और चीन उसे ‘लाइव लैब’ के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, ताकि वह वास्तविक युद्ध परिस्थिति में अपनी तकनीक का परीक्षण कर सके.
पाकिस्तान ने तुर्की के ड्रोन सिस्टम का भी इस्तेमाल किया
उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान ने तुर्की के ड्रोन सिस्टम का भी इस्तेमाल किया, जिनका प्रयोग निगरानी और हमलों दोनों में किया गया. इससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान को केवल एक देश से नहीं, बल्कि एक संगठित और समन्वित विरोधी नेटवर्क से तकनीकी और सामरिक सहयोग मिल रहा था. सेना उपप्रमुख ने कहा कि यह केवल एक सीमित सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि यह भारत की संप्रभुता, रक्षा क्षमताओं और तकनीकी आत्मनिर्भरता की भी परीक्षा थी. “हमने देखा कि पाकिस्तान, चीन और तुर्की मिलकर एक संगठित विरोधी गठजोड़ की तरह काम कर रहे थे,” उन्होंने कहा. इसके साथ ही उन्होंने भारत की भविष्य की रणनीतिक आवश्यकताओं पर भी जोर दिया.
भारतीय स्वदेशी प्रणालियों ने उल्लेखनीय सफलता दिखाई
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में युद्ध केवल जमीन पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष, साइबर स्पेस और सूचना के क्षेत्र में लड़े जाएंगे. भारत को अपनी C4ISR प्रणाली — यानी कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर्स, इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनसेंस — को और मजबूत करना होगा. जनरल सिंह ने यह भी स्वीकार किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कुछ विदेशी उपकरणों ने अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया, वहीं भारतीय स्वदेशी प्रणालियों ने उल्लेखनीय सफलता दिखाई. उन्होंने नागास्त्र-1, ब्रह्मोस और पिनाका जैसे स्वदेशी हथियारों की विशेष सराहना की. इस पूरे संदर्भ में यह स्पष्ट है कि भारत को अब पारंपरिक दो-फ्रंट युद्ध की सोच से आगे बढ़कर एक बहुआयामी और तकनीकी रूप से अत्यधिक उन्नत युद्ध प्रणाली के लिए तैयार रहना होगा. लेफ्टिनेंट जनरल राहुल सिंह का बयान एक स्पष्ट संकेत है कि अब राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा केवल सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह सैटेलाइट, डेटा, सूचना और समन्वित रणनीतिक प्रतिक्रिया पर भी आधारित होगी.