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Photo (MEA)
भारत अफगानिस्तान संबंधों को दिल्ली में मिली नई ऊंचाई से कबूल में इस्लामाबाद के स्ट्रेटजिक डेप्थ को ध्वस्त होते देखा जा सकता है. भारत ने काबुल में अपने दूतावास को पुनः सक्रिय कर संबंधों को उच्च स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया है. यह कदम ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर हैं. पाकिस्तान जहां अफगानिस्तान को हमेशा अपनी रणनीतिक गहराई के रूप में देखता रहा, वहीं भारत ने उसे सदैव एक संप्रभु राष्ट्र और साझेदार के रूप में सम्मान दिया है.
पाकिस्तान की असफल स्ट्रेटिजिक डेप्थ पॉलिसी
पाकिस्तान ने दशकों तक अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर उसे अस्थिर बनाए रखने की कोशिश की ताकि वह इस्लामाबाद पर निर्भर रहे. तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि उसे काबुल में एक 'प्रो-पाकिस्तान' शासन मिलेगा जो उसकी सभी मांगें मानेगा , ख़ासकर ड्यूरंड लाइन विवाद पर लेकिन 2023 के बाद हालात पूरी तरह उलट गए। पाकिस्तान को तालिबान पर नियंत्रण का भ्रम टूट गया और उसने दबाव बनाने के लिए जबरन अफगान शरणार्थियों को निकालना, वीज़ा रोकना और सीमा पार हवाई हमले करना शुरू कर दिया. इन कार्रवाइयों ने दोनों देशों के संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया और इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने कई बार अफगानिस्तान की संप्रभुता को तार तार कर अपनी दबंगई को साबित करने की कोशिश की लेकिन यह कोशिशें भी उल्टी साबित हुई.
मानवीय संवेदना बनाम सैन्य आक्रामकता
भारत ने अफगानिस्तान में हमेशा जन-केंद्रित विकास को प्राथमिकता दी है चाहे वह समय समय और मानवीय सहायता हो, स्टूडेंट्स को छात्रवृत्तियां हो या फिर जरूरी चिकित्सा सहायता. इस दौरे के दौरान भी भारत ने 20 एम्बुलेंस, खाद्य सामग्री, MRI और CT स्कैन मशीनें अफगानिस्तान को सौंपते हुए मानवीय और चिकित्सा के क्षेत्र में सहायता के कदम को आगे बढ़ाया.
जहां भारत और अफगानिस्तान के संबंध एक तरफ सत्ता टू सत्ता हीं नहीं बल्कि पीपल टू पीपल आगे बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान सीमा पार हवाई हमलों के जरिए पक्तिका और खोस्त में आम नागरिकों की जान ले रहा है, जिससे स्थानीय जनता में पाकिस्तान के प्रति गहरा आक्रोश देखा जा सकता है और ऐसी घटनाएं लंबे समय से पाक सेना दोहरा रही है.
पाकिस्तान की दोहरी नीति: गुड टेररिज्म Vs बैड टेररिज्म
पाकिस्तान लंबे समय से “गुड टेररिस्ट” और “बैड टेररिस्ट” की नीति पर चलता रहा है. खुद उसके मंत्रियों ने माना है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दिया. वहीं, अफगान रक्षा मंत्रालय ने ISKP के ठिकानों की पहचान पाकिस्तान के मस्तुंग क्षेत्र में की है. इसके विपरीत, भारत ने आतंकवाद के हर रूप और अभिव्यक्ति की निंदा की है और हमेशा निर्णायक कार्रवाई की मांग की है. उल्लेखनीय है कि तालिबान ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की थी और पाकिस्तान की आतंकी नीतियों को दुत्कारा था.
ड्यूरंड लाइन विवाद: स्थायी तनाव की जड़
1893 में खींची गई ड्यूरंड रेखा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सबसे बड़ा विवाद है. पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है, जबकि अफगानिस्तान इसे औपनिवेशिक दबाव का परिणाम बताता है. 2022 के बाद दोनों पक्षों में कई बार सीमा पर झड़पें हुईं जैसे चमन बॉर्डर पर दिसंबर 2022 में हुई गोलीबारी जिसमें आम नागरिकों की मौत हुई.
भारत का दृष्टिकोण: अफगान-नेतृत्व वाला समाधान
भारत ने हमेशा अफगान लेड प्रक्रिया का समर्थन किया है. भारत की मॉस्को फॉर्मेट में सक्रिय भागीदारी और अफगान प्रतिनिधियों की उपस्थिति इसकी विश्वसनीयता को मज़बूत करती है. इसके विपरीत, पाकिस्तान ने अपने तथाकथित “क्वाड ग्रुप” में अफगान प्रतिनिधियों को शामिल ही नहीं किया.
आर्थिक नाकेबंदी और बॉर्डर पॉलिटिक्स
पाकिस्तान ने 2023 और 2024 में बार-बार टॉरखम और चमन (स्पिन बोल्डक) बॉर्डर को बंद किया, जिससे अफगान व्यापारियों को लाखों डॉलर का नुकसान हुआ. जनवरी 2025 में नई वीज़ा नीति ने अफगान ड्राइवरों के लिए गुड्स ट्रांसपोर्ट लगभग ठप कर दिया. यह आर्थिक दबाव डालने की सोची-समझी नीति थी.
इसके विपरीत, भारत चाबहार पोर्ट के माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशिया को समुद्री संपर्क प्रदान कर रहा है और हवाई संपर्क भी बढ़ा रहा है.
शरणार्थी संकट और मानवीय त्रासदी
नवंबर 2023 में पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान पर दबाव डालने के मकसद से अफगान शरणार्थियों को निकालना शुरू किया. पाकिस्तान ने इलीगल फॉरेनर्स रिपेट्रिशन प्लान शुरू किया जिसके तहत अब तक 10 लाख से अधिक अफगान शरणार्थियों को जबरन निकाला जा चुका है. UNHCR और ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट्स ने पाकिस्तान में अफगानों पर अत्याचार, संपत्ति ज़ब्ती और परिवारों के बिखरने के मामलों को भी कई बार उजागर किया है.
अफगानिस्तान की गरिमा और भारत की साझेदारी
भारत ने अफगान जनता के साथ संबंध हमेशा परस्पर सम्मान और विश्वास पर आधारित रखे हैं. पाकिस्तान जहां अफगानिस्तान को नियंत्रण में रखने की कोशिश करता रहा है, वहीं भारत ने उसे स्वावलंबन, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के माध्यम से सशक्त बनाने का काम किया है.
अंततः, यह कहा जा सकता है कि जैसे बांग्लादेश के मामले में पाकिस्तान को वहां के लोगों से माफ़ी मांगनी पड़ी, वैसे ही अफगानिस्तान की जनता से भी उसे माफ़ी माँगनी पड़ेगी.
भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते की मौजूदा तासीर देखें तो कहा जा सकता है की ये रिश्ते किसी कृत्रिम सीमा या तीसरे देश के प्रचार और प्रोपगंडा से प्रभावित नहीं हो सकते. ये रिश्ते परस्पर सम्मान, विश्वास और साझी विरासत पर टिके हैं और आने वाले वर्षों में यह संबंध दक्षिण एशिया की स्थिरता की दिशा तय करेंगे.
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