जम्मू कश्मीर के पहलगाव में निर्दोष पर्यटकों को आतंकियों को धर्म पूछकर और कलमा न पढ़ने पर जान से मार दिया था. ऐसा ही कुछ 78 साल पहले बंटवारे के समय भी पाकिस्तानी कबाइलियों ने धर्म पूछकर और कलमा न पढ़ने पर जान से मार दिया था. इसके गवाह खुद है 97 साल के तिलक राज कपूर हैं जो उस समय किसी तरह जान बचाकर भाग पाए थे,वे बताते हैं की उस समय भी उसी तरह मारा था आज भी उसी तरह मार रहे हैं. इस बार सरकार सारे काम छोड़कर पहले इन्हे पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए. जानिये 97 साल के तिलक राज कपूर की कहानी.
आंखों देखा हाल को याद किया
वाराणसी के तिलक राज कपूर आजादी के आंखों देखा हाल को याद किया. 20 मार्च 1929 में लाहौर के देवी दत्त के घर जन्मे तिलक राज कपूर ने आजादी के दौर को याद कर रो पड़ते हैं. सन 1947 में बंटवारे की खाई सामने आई. देश को आजादी 15 अगस्त सन 1947 को मिली पर लाहौर और अन्य सीमांत प्रांतों में आजादी की खुशबू 2 महीना पहले आनी शुरू हो गई. मगर वह दहशत के रूप में सामने आई.
चीख पुकार और कत्ले आम मचा था
चारों तरफ कट्टरपंथियों का हुजूम नारे लगाता दिखाई पड़ता था, दंगे भड़क चुके थे. सड़कों पर निकलने के बाद कोई अपने घरों तक महफूज़ पहुंचेगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं थी. चारों ओर चीख पुकार और कत्ले आम मचा था. हमारे घर के पास रोज़ किसी न किसी की हत्या हो रही थी उस समय भी धर्म पूछकर और कलमा न पढ़ने में कत्लेआम हुआ. अपने घर में आज भी उन दिनों को याद कर दशहत से उनकी आंखे बंद सी हो जाती है. उम्र भले ही 97 की हो गई हो पर जैसे लगता है कल की ही बात हो.
आजादी का जश्न मनाया जा रहा था
तिलक राज कपूर कहते हैं कि हिन्दुस्तान की गलियों में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, और पंजाब में दंगों का खौफ था. इधर से मुस्लिमों को लेकर जाने वाली ट्रेन को हिन्दू कट्टरपंथी आग के हवाले कर देते थे. उधर से आने वाली ट्रेन को बीच रास्ते में मुस्लिम कट्टरपंथी रोककर सभी यात्रियों को काट दिया करते थे. अक्टूबर के बाद कुछ हालात सामान्य हुए. लोग शरणार्थी कैंपों में शरण लेकर अपनी जान बचाते थे. हमारे परिवार के 17 सदस्यों ने भी एक महीने तक शरणार्थी कैंप में शरण ली. कैंप से एक किलोमीटर पैदल चलकर मंडी बहुउद्दीन जो अब पाकिस्तान में है, स्टेशन से ट्रेन पकड़कर भारत आये और तब से उनकी पीढ़िया काशी में है वो बस इतना ही कहते है की उस समय जो हुआ था आज भी पहलगाव में वही हुआ अब इन आतंकियों का जड़ से खात्मा जरूरी है.