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26 साल पहले धोखे से कैश करवाया था 2,212 रुपये का चेक, अब चुकाने पड़ेंगे 55 लाख

सुप्रीम कोर्ट ने इस शख्स पर अपना फैसला सुनाते हुए आपराधिक आरोपों से इन्हें बरी कर दिया, लेकिन बतौर जुर्माना इन्हें 5 लाख रुपया देने को कहा है जबकि शिकायत के सेटलमेंट के लिए 50 लाख रूपये अलग से देने को कहा है

Updated on: 06 Sep 2020, 05:17 PM

नई दिल्‍ली:

कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं ये डॉलॉग हमने अकसर कई फिल्मों में सुने होंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह साबित भी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने बैंक फ्रॉड के एक 26 साल पुराने मामले में सजा सुनाई है. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने ये साबित कर दिया है कि गलती छोटी हो या बड़ी कानून की नजर में अपराध की सजा होती ही है. ऐसे में किसी को भी क्राइम करने से पहले 100 बार सोचना चाहिए कि वो सही कर रहा है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने साल 1994 के एक मामले में एक व्यक्ति को सजा सुनाई है.

इस वयक्ति ने अब से 26 साल पहले एक फर्जी अकाउंट खोलकर चेक के जरिए 2212.5 रुपये निकाल लिए थे. इसके बाद इस शख्स  हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट दौड़ लगानी पड़ी और सर्वोच्च न्यायालय ने इस शख्स को 55 लाख रुपये वापस करने का आदेश दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस शख्स पर अपना फैसला सुनाते हुए आपराधिक आरोपों से इन्हें बरी कर दिया, लेकिन बतौर जुर्माना इन्हें 5 लाख रुपया देने को कहा है जबकि शिकायत के सेटलमेंट के लिए 50 लाख रूपये अलग से देने को कहा है इस तरह से ये पूरा मामला 55 लाख रुपये देकर खत्म हुआ.

आइए आपको बताते हैं इस बैंक फ्रॉड की पूरी कहानी, साल1992 की मई में महेंद्र कुमार शारदा नामका शख्स ओम माहेश्वरी के यहां मैनेजर के तौर पर काम करता था. आपको बता दें कि माहेश्वरी उन दिनों दिल्ली स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य थे. पांच साल बाद यानि की साल 1997 में माहेश्वरी ने महेंद्र कुमार शारदा के खिलाफ दिल्ली में एफआईआर दर्ज करवाई. इस एफआईआर में ओम माहेश्वरी ने अपने मैनेजर महेंद्र शारदा पर बैंक फ्रॉड का आरोप लगाया और कंप्लेंट में ये लिखवाया कि उनके मैनेजर शारदा ने गैरकानूनी तरीके से उनके नाम पर अकाउंट खोल लिए. इसके बाद चेक के जरिए कमीशन और ब्रोकरेज के पैसे बिना उनकी जानकारी के बैंक से निकाल लिए. आपको बता दें कि शारदा ने उस वक्त 2212 रुपये और 50 पैसे निकाले थे.

महेंद्र शारदा पर धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप लगे जिसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले तो शारदा पर लगे आरोपो को खारिज करने से इनकार कर दिया था. लेकिन बाद में जब महेंद्र शारदा इस मामले के सेटलमेंट के लिए तैयार हो गए तब हाईकोर्ट ने कहा था कि ये गंभीर आरोप हैं. जिसके बाद ये मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई की और न्यायमूर्ति संजय के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने महेंद्र शारदा के वकील से सवाल किया कि इस मामले को सुलझाने दो दशक का समय क्यों लगा. उन्होंने न्यायिक प्रक्रियाओं में कोर्ट समय बर्बाद करने के लिए शारदा पर 5 लाख का जुर्माना लगाया. अब सुप्रीम कोर्ट 15 सितंबर को शारदा के भविष्य पर फैसला सुनाएगा.